तूने जबसे सीख लिया है
मदहोश बनाना साकी को
कितने भी मयकश आये जाएँ
मुश्किल है लुभाना साकी को ....
भूली सब अपना बेगाना
याद नहीं अब खुद की भी
तेरे इश्क में डूब गयी है
पार ना जाना साकी को .....
तेरे क़दमों की आहट से
धडके दिल ,लरजे तन मन
बारिश में अब इश्क की तेरे
भीग ही जाना साकी को...
तूने तो तौबा की है अब
मय को हाथ लगाने की
पर चाहत का ये पैमाना
आता छलकाना साकी को ..
झुक जाती है सजदे में
खुदा बना उसका तू ही
कैसे समझे कैसे जाने
बेदर्द ज़माना साकी को....
4 टिप्पणियां:
bahut hi behtareen rachna hai mudita ji....
kuch to baat hai aapme..har baar itna sateek lekhan....
waah...
mudita ji..too gud!
कैसे समझे कैसे जाने,
बेदर्द जमाना साकी को.
वाह.... क्या लय है... बेहद ख़ूबसूरत गीत.
मुदिता जी...
तूने तो तौबा की है अब
मय को हाथ लगाने की
पर चाहत का ये पैमाना
आता छलकाना साकी को ..
झुक जाती है सजदे में
खुदा बना उसका तू ही
कैसे समझे कैसे जाने
बेदर्द ज़माना साकी को....
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....
दीपक....
एक टिप्पणी भेजें