शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

कौन है ....

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निगाहें शांत 
और 
स्वर उसका 
मौन है ..
सरगोशी 
कानों में
फिर कर रहा कौन है....!

खिले नहीं 
बगिया में,
जूही या मोगरा ,
साँसों में 
महक सी 
फिर भर रहा कौन है ...!

साज़ नहीं 
दिखता ,
आवाज़ गुम है जैसे,
बन सुर 
हृदय का मेरे 
फिर बज रहा कौन है ...! 

बादल नहीं
फलक पे ,
बरखा भी राह भूली ,
अमृत की 
बूंदों जैसा ,
फिर झर रहा कौन है ...!



गुरुवार, 26 जुलाई 2012

करने साकार सब सपने....

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कहे जाते हो
हाले दिल
बिठा कर
सामने अपने
नज़र उठती नहीं मेरी
मुखर अब
हो चले सपने......

उमड़ता है
ना जाने क्या
हृदय के
अन्तरंग तल से
छुअन होती है
रूहों की ,
नयन
भर जाते हैं
जल से ...

नहीं है
वक़्त की सीमा
हैं होते साथ
जब भी हम ,
कभी बीते सदी
पल में,
कभी पल से
सदी भी कम ....

किये हैं पार
कई सोपान
हमने संग
मेरे हमदम ,
मिली हर
राह पे खुशियाँ
छोड़ हर मोड़ पर
सब ग़म ....

करने साकार
सब सपने
दिलो में
जो पले है,
सजग ले हाथ
हाथों में
हो चेतन
हम चले हैं .........

समवेत.......

दिखते बाहर हैं
रंग अनेकों
अंतस है
शुभ्र श्वेत
गुंजारित है
हर कण में
सुर अपना
समवेत ....

सावन की
बूंदों ने देखो
हर पात का
चेहरा धुला दिया
झुलसा मन ,
तन धूल अटा था
सहज ही
सब कुछ
भुला दिया
मौसम ,
जीवन में देता है
परिवर्तन संकेत...

इन्द्रधनुष के रंग
हैं अपने
हरी धरा
नभ नील के
सपने
जीवन में
सब वही है
मिलता
जो होता अभिप्रेत ....

मोह माया से
हो निर्लिप्त
मन लिप्साओं से
मुक्त हुआ,
निज-पर के
सब भाव तिरोहित
सहज प्रेम से
युक्त हुआ
है सकल जगत
निकेत उसी का
जो होता अनिकेत ...

जो जैसा है
वैसा ही जब ,
हमने था
स्वीकार किया ,
गिरे आवरण
सहज रूप में
निज को
अंगीकार किया
मूल सत्व ही
परम तत्व है
घटित जहाँ अद्वेत ...
गुंजारित है
हर कण में
सुर अपना
समवेत ....

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

पुरानी गर्द .....


इतने जन्म ,
इतने साल,
इतने महीने,
इतने दिन ,
इतनी भीड़ ,
इतने सच ,
इतने झूठ,
इतने पाप ,
इतने  पुण्य,
ना जाने क्या क्या !
लदे हुए हैं
हम  पर
जाने अनजाने
पुरानी गर्द की मानिंद ...

बन गए हैं
इस गर्द पर
नक़्शे-कदम
गुज़रे वक़्त के,
नाजुक लम्हात के
कठिन हालात के ,
बन गए हैं
हम वो
जो हम नहीं ,
दर-असल
भुला बैठे हैं हम
सूरत और सीरत
खुद की ...

आओ ना !
मिटा दें
झाड़ कर
ना जाने
कब से जमी
इस धूल को ,
जान लें और छू लें ,
अपने उस वजूद को ,
जो हैं हम
महज़ हम ....

समर्पण...

# # #


समर्पण
होता है घटित
सहज ही ,
नहीं है यह
कोई क्रिया
किया जाता हो
सप्रयास
जिसे
द्वारा किसी
कर्ता के ....

किया जाता है
कभी त्याग
चढ़ा कर आवरण
समर्पण का
और
होती है चाहत
त्याग के
अभिज्ञान की

सप्रयास किया
अहंकार जनित
छद्म समर्पण
होता है कभी
दान स्वरुप
दानी होने का
दंभ लिए ...

समर्पण
है पिघलना
बिना किसी
प्रयास के,
नहीं है यह
निर्भरता
किसी अन्य पर ..
कितना सुन्दर है
समर्पण,
कितनी असुंदर
निर्भरता...

हैं ना
विचित्र बात
त्याग,
दान
और
अर्पण की...

किताब ज़िंदगी की ....

लिख दिए हैं
ज़िन्दगी ने,
सफ़े चाहे -अनचाहे
किताब में
मेरी तुम्हारी ,

पढ़ लिया है
डूब कर
मैंने तुझको
तूने मुझको
आगाज़ से
अंजाम तक,

ये बेजुबान
बेजान अलफ़ाज़
नहीं कह पा रहे
दास्तान
मेरी तुम्हारी ,

आओ ना !
चीर कर
उन सफ़ों को
समा जाएँ
जिल्द में
हम दोनों

हो जाएगी यूँ
मेरे हमनवा !
मुक्कमल
ये किताब
ज़िन्दगी की .....

सोमवार, 9 जुलाई 2012

तू दिया ..... मैं बाती ..!




अब कहाँ हम दूर ए साथी !
राह अपनी जगमगाती
प्रकाश है कृतित्व अपना
तू दिया ....मैं बाती ......!!

यूँ समेटा तू ने खुद में
घुल रहा अस्तित्व मेरा
जो हृदय में है प्रवाहित
सत्व तेरा और मेरा
आ भिगो दूं सीना तेरा
मेरे आंसू ,बनें थाती ......

काल कुछ ना कर पायेगा
हम शक्ति हैं एक दूजे की
तूफां सब सह लिए हैं साजन
दीप्त लौ अब ना बुझेगी
बस आलोक ही ध्येय है अपना
कृष्ण रजनी क्या रुक पाती .....!!