बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

कभी झांको ज़रा खुद में....

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वो बन के
आशना
क्यूँ भोंकते हैं
विष बुझा
खंजर ..!!
कभी झांको
जरा खुद में
अजी !
यह देख लो
मंजर ...

लगा दो
तोहमतें
कितनी भी,
बेशक !
नहीं है
कुछ कभी
हासिल ..
कि देते हो
तुम्ही
मौका ,
क्यूँ रहते
खुद से
तुम
गाफिल !!
क्यूँ करते
फूल की
चाहत ,
है सींची
जब धरा
बंजर !!
कभी झांको
जरा खुद में
अजी !
यह देख लो
मंजर ...

सभी काटे
गले
एक दूसरे के
ऐसी
आफ़त क्या !!
गिरा कर
दूसरे को ही
है साबित
होती
ताक़त क्या !!
भुला बैठें हैं
सब जीना
बचे हैं
अब तो
बस
पिंजर ......
कभी झांको
जरा खुद में
अजी !
यह देख लो
मंजर ...





सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

गुरु-शिष्य

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होता
घट को
साधना ,
ज्यूँ
कुम्हार के
हाथ ..
ऐसे ही
ढलता,
बनता ,
शिष्य ,
गुरु के
साथ .....

बाहर से
एक हाथ की,
देता
मध्यम
चोट ...
भीतर
दूजे हाथ से
सही लगाए
ओट....

मिटाता भी,
बनाता भी,
गुरु का है
ये धर्म...
करे
संतुलन
दोनों का,
ऐसा उसका
कर्म,,,,

गुरु निखारे
शिष्य को,
दे
भीतर का
साथ ...
काटे,
झूठे आवरण
औ'
अहम् जनित
हर बात ...

मिटने ,
बनने
को रहे ,
तत्पर
जो
हर क्षण...
शिष्य है
सच्चा
बस वही,
जिसमें
ये
लक्षण ......

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

एकांत अवकाश


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होती
जिस पल
संग
स्वयं के
मैं
एकांत
अवकाश में ,
ठीक उसी पल
चुपके से
तुम
चुरा ले जाते,
मुझ जोगन को
स्वयं
मुझी से,
सपनो के
आकाश में ....

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

प्रेरणा...


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कितना भी
तिमिर हो
गहन
पहुँच ही जाता है
प्रकाश
जलते हुए
एक
दीप का ,
सुदूर प्रज्ज्वलित
एक और
दीप के समीप ...
करने को
पराजित
अपने मध्य पसरे
अंधकार को ,
बन जाते हैं
प्रेरणा
वो नन्हे दीपक
एक दूजे के लिए,
होने को
आलोकित
अनुरूप
स्वयं की
क्षमता के .....




बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

तलाश .....

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कर देते हैं
व्यर्थ हम,
समय
और
ऊर्जा
अपनी,
अनावश्यक
तलाश में
प्रेम की ..
अपितु !
आवश्यक है
तलाश ,
मात्र
स्व-निर्मित
अवरोधों की,
हुआ है निर्माण
विरुद्ध प्रेम के
जिनका,
निज हृदयमें ..
प्राप्ति
उन अवरोधों की
मिटा देती है
व्यवधान सभी,
बहने को
निर्बाध ,
दरिया प्रेम का
उदगम है
जिसका,
अन्तःस्थल
हमारा ही ....

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

वैलेंटाईन डे....


मन रहा है
आज उत्सव
प्रेम के
आनंद का ,
दायरा जिसका
है सीमित
फूल
तोहफों
चंद का


क्षोभ हृदय का
दबा कर
आज तो
मुस्का ही लें ,
प्रेम का है दिन
बिना झगड़े
इसे
निपटा ही लें ...

दिल में ना हो
फिर भी
खुश तो
खुद को
दिखलाना है
एक दिन की
बात है
इतना तो बस
बहलाना है ...


करने को
शिकवे गिले
है साल
पूरा तो पड़ा ,
आज दिल
मगर
दस्तूर
इस दिन का ,
निभाने पर अड़ा...

झूम लें
और
नाच लें
बस ओढ़ कर
कुछ आवरण ,
कल से
घिसटेंगे
उसी ढर्रे पर
फिर
ये आदी चरण...

प्रेम का
पाखण्ड है बस
प्रेम दिल में
है नहीं ,
बाँध के
इक दिन में ऐसे
प्रेम
टिक सकता नहीं ....

मत करो
संकुचित
हृदय को
फूल
तोहफों मात्र तक ,
प्रेम का
दरिया बहा दो
पहुंचे
स्वयं जो
पात्र तक ...

जी ना पाए
गर जो क्षण क्षण
इस नदी में
डूब कर ,
दिन यूँ
निश्चित
करते रहोगे
प्रेम के ,
फिर ऊब कर ...

जी रहा जो
प्रेममय
हो कर
जहान में
हर निमिष ,
उसको क्या अंतर
दिवस हो कोई
हो कोई भी निश...!!

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

ढाई आखर प्रेम का ...


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दो सम्पूर्ण
शब्दों को
जोड़ता हुआ
एक आधा शब्द ,
कहते हैं जिसे
प्रेम ,
इश्क
और
प्यार ..
समेटे है
स्वयं में ही
दर्शन
प्रेम का ...
जुड़ते हैं
दो अस्तित्व
जब
प्रेम के
इस अधूरेपन से ,
जीते हैं
क्षण प्रति क्षण
उसे ,
बढते हुए
पूर्णता की ओर...
अनवरत
गतिशील
प्रेम
नहीं पहुँचता
कभी
पूर्णता को ,
होती है
अनुभूति
पूर्णता की
जिस क्षण,
प्रारंभ
होने लगता है
प्रेम भाव का
क्षरण ..
अधूरापन ही
प्रेम का
रखता है
जीवंत उसको..
समझो न !!
रहस्य
प्रेम के इस
ढाई आखर का





शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

अप्रतिम विजय ..!! ( भावानुवाद)


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संभवतः
ना बदले
पूरी दुनिया ,
बदल सकती भी नहीं
पूरी दुनिया ,
बदलेगी भी नहीं कभी
पूरी दुनिया ,
किन्तु !!!
बदल सकते हो
इसी क्षण
अपना
नन्हा सा संसार
हमेशा के लिए ,
मदद से
अपनी चैतन्यता
और आत्मविश्वास
की ..
हृदय !!
वही तो है
तुम्हारी
अप्रतिम विजय ..!!

( भावानुवाद--- " श्री चिन्मोय " की एक रचना का )

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

लो !अवनि झूम उठी मस्ती में

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आप सभी को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं ..इस पर्व को प्रकृति अपने ढंग से मनाती है.. जहाँ मनुष्य को करने के लिए कुछ नहीं होता सिवाय प्रकृति के इस उल्लास को आत्मसात करने के ....देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व सुर ,संगीत, रचनात्मकता , आह्लाद का उत्सव है ..आइये जरा कुछ क्षण अपनी व्यस्त ज़िंदगी में रुक कर इस पर्व का आनंद लें प्रकृति के साथ ...

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लो !अवनि झूम उठी मस्ती में
घुल गया वसंत जब हस्ती में
कण कण में छलके पावन हास
मदिर सुगन्धित आया मधुमास
लो ! अवनि झूम उठी मस्ती में

आम्र-कुञ्ज हो गए सुगन्धित
कोयल छेड़ रही है तान
सरसों फूल रही खेतों में
श्रृंगारित कुसुमों पर मुस्कान
उल्लास भरा मन की बस्ती में

लो !अवनि झूम उठी मस्ती में

शीत ऋतु में पात झरे थे
वृक्षों पर कोंपल फूट गयी
नर्म -गर्म पा ताप रवि का
अलसित तन्द्रायें टूट गयी
हो आह्लादित ! रहो न पस्ती में

लो !अवनि झूम उठी मस्ती में



शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

प्रेम ....

घुल गए हैं
वजूद
एक दूसरे में
जबसे ,
टूट गया है
भ्रम
करने का
प्रेम
तुमको ,
जान गयी हूँ,
नहीं करते हो
प्रेम
तुम भी
मुझसे ....
'कर्ता'
होने का
'अहम् '
बचाए रखता है
मुझमें
और
तुममें
उस
'मैं '
को ,
जो नहीं रह गया है
शेष ,
मध्य हमारे...
घटित हुआ है
प्रेम
वेग में
जिसके
घुल कर
हो गए हैं
हम
प्रेम ..
अपने
अंतःकरण के
गहनतम तल तक
सिर्फ हैं हम
प्रेम ...
और !!
घटित हुआ है
'एकत्व'
उस
परम आत्मा से ...
कारण जिसके हैं
सुवासित
हवाएं
और
रोशन
दिशाएं .....

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

गुणातीत....(गीता से )


योगेश्वर कृष्ण द्वारा तीनो गुणों के भिन्न प्रभाव बताने पर श्रीमद्भगवद्गीता  के चौदहवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में अर्जुन कृष्ण से पूछते है कि व्यक्ति इन त्रिगुण के प्रभाव से मुक्त हो गया है यह कैसे जाना जा सकता है ..उनके इस प्रश्न पर कृष्ण उनको उस व्यक्ति के आचार व्यवहार और इन त्रिगुणों से मुक्त होने के प्रभाव के बारे में बताते हैं ...

अर्जुन उवाच
कैर्लिगैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो।
किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते।।21।।
श्रीभगवानुवाच
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि कांक्षति।।22।।
उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते।
गुणा वर्तन्त इत्ये योऽवतिष्ठति नेंगते।।23।।
समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकांचनः।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति:।24।।
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।25।।
मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगने सेवते।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते।।26।।
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च।।27।।






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अर्जुन बोले

बतलाओ लक्षण प्रभु ,जन होते जब त्रिगुण पार
कैसे घटित होता है यह ! क्या होता उनका आचार

बोले योगेश्वर

ज्ञान ,प्रवृति ,मोह की अति से  ,जो करते नहीं द्वेष
नहीं प्राप्य यदि ,पाने की इच्छा भी नहीं विशेष

तटस्थ रहे सब गुणों से ,विचलित जो होता नहीं
त्रिगुण करते कार्य सब , ज्ञान यह खोता नहीं

सुख दुःख एक समान जिसे ,ढेल ,पत्थर सम स्वर्ण भी
निंदा-संस्तुति है सम जिसे ,है धीर, तुल्य अप्रिय-प्रिय सभी

नहीं भेद रिपु-मित्र में,सम जिसे मान-अपमान है
तजे हैं जिसने कृतित्वभिमान  ,वो गुणातीत महान है

मेरी भक्ति करता है जो शुद्ध निश्छल हो कर मात्र
पार हो त्रिगुण से ,बन जाता ब्रह्म प्राप्ति का पात्र

क्यूंकि ,मुझमें ब्रह्म अवस्थित शाश्वत्य ,अमृत्य निराकार
अव्यय ,सुख और धर्म का हूँ मैं एकान्तिक सिद्धि आधार

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बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

तेरी पनाहों में ...

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रहा था मन उलझता ,ज़िन्दगी की राहों में
हुए तुम रहनुमा मेरे, चला तेरी पनाहों में

भटकती सोच थी ,था हर तरफ इक शोर मशरे का
हुआ जाता था दिल गाफ़िल, उदासी थी निगाहों में

तलाशें कैसे दुनिया में,ख़ुशी होती है किस शै में
सुकूने दिल तो मिलता है ,सिमट के तेरी बाँहों में

चलो जानां ,गुज़ारें हम ,हसीं लम्हें, परस्तिश में
इबादत का समय अपनी,गुज़र जाये ना आहों में

चले हो साथ तुम मेरे,हसीं है ये सफ़र अपना
मंज़िल की खबर किसको ,है बस तस्कीन राहों में

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

राहत-चाहत

होती है
साथ रहने में
जिसके
लौकिक राहत ...
नहीं होती
क्यूँ
उसके
दिल में
साथ होने की
चाहत ....
पनपती है
साथ उसका
पाने की
चाहत...
मिल जाती है
रूह को
जिससे,
अलौकिक
राहत