गुरुवार, 29 मार्च 2012

छोटे छोटे घूँट

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थोड़ी है ज़िन्दगानी
पुरजोश है जीना
छोटे छोटे घूंटों से,
जीवन को है पीना ..

लौटा भी सकेगा,
फिर क्या ये ज़माना,
वक्त इसने जो हमारा
जिस तरहा है छीना ?..

मावस की तीरगी में
महताब जल्वाआरा ,
रुख-ए-रोशन पे ज़रा देखो
परदा है बहोत झीना....

शोखी-ए-शबाब गुल पे
महकी सी फिजाएं
वस्ल का ये मौसम
लगता है भीना-भीना ....

ठहरी है नज़र जबसे
मदहोश हुए ऐसे
रग रग में तो हमारे
बहे सागर औ' मीना ...





मंगलवार, 27 मार्च 2012

ऐ हमनशीं ....


होती है महसूस
कही अनकही
मैं भी वही ,
तू भी वही ..
बेलफ्ज़ मोहब्बत
रग रग से
उमड़ कर
नज़रों से बही ...

कैसे कहूँ क्या है
इस पल
मेरे ज़ेहन में ,
आ बैठे हो
तुम ही मेरे दिल के
सहन में ...
जिस्मों के
फासले से
रंज कुछ
हमको नहीं ..
जीने को ज़िंदगी
हर लम्हा
संग है हम
ऐ हमनशीं ....

बुधवार, 21 मार्च 2012

मृग-कस्तूरी वन वन.....


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ह़र स्पर्श में
मिल पाती क्या
विद्युत् सम
कोई सिहरन ?
ह़र भुज बंधन
बन सकता क्या
एक प्रेम भरा
आलिंगन ?
ह़र पायल झंकार
क्या बनती
मन-चिंतन
उर-बंधन ?
हर बादल की
शोख अदाएं
ला सकती क्या
सावन ?
ह़र वंशी धुन
कर सकती क्या
आकुल राधा चितवन ?

होता है जब
बोध सत्व का
तभी तरंगें मिलती,
क्यूँ ढूंढें
अपने सौरभ को
मृग-कस्तूरी
वन वन ?

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

आठवां आहंग ....


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हवाओं में घुला
फागुन का रंग..
थिरक रहा मन
झूमे अंग अंग...
टेसू का खुमार
भंग की तरंग ...
बिरहा का गीत
गा रहा मलंग...
धडकनों की लय
ज्यूँ बाजे मृदंग ..
क्यूँ ना ऐसे में
हम तुम संग ...
बज उठे तन-मन
लाखों जलतरंग ..
साध लें जीने का
अपना ही एक ढंग ...
गुनगुनाएं जीवन का
यूँ आठवां आहंग ,
आठवां आहंग .......

(आहंग -संगीतमय स्वर )

शनिवार, 3 मार्च 2012

ज़र्रे-ज़र्रे में छिपे हो


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मेरी सूरत में तुम ही तुम नज़र आते हो मुझे
ज़र्रे-ज़र्रे में छिपे हो औ' सताते हो मुझे ....

लफ्ज़ खामोश हैं और मौसिकी बनी धड़कन
गीत की तरह तुम,दिल में ही गाते हो मुझे....

ऐसे सज धज के ना निकलो यूँ घर से ओ जालिम
मिलने जाते हो रकीबों से ,जलाते हो मुझे ....

ख़्वाब अपने हैं,जिए जा रहे जो हर लम्हे
होंगे इक रोज़ हक़ीक़त ये बताते हो मुझे ....

हुई मदहोश हूँ जब जब भी देखा है तुमको
इश्क के जाम निगाहों से पिलाते हो मुझे....


( हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने की तर्ज़ पर )