शुक्रवार, 9 मार्च 2012

आठवां आहंग ....


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हवाओं में घुला
फागुन का रंग..
थिरक रहा मन
झूमे अंग अंग...
टेसू का खुमार
भंग की तरंग ...
बिरहा का गीत
गा रहा मलंग...
धडकनों की लय
ज्यूँ बाजे मृदंग ..
क्यूँ ना ऐसे में
हम तुम संग ...
बज उठे तन-मन
लाखों जलतरंग ..
साध लें जीने का
अपना ही एक ढंग ...
गुनगुनाएं जीवन का
यूँ आठवां आहंग ,
आठवां आहंग .......

(आहंग -संगीतमय स्वर )

1 टिप्पणी:

abhi ने कहा…

फागुन का रंग उतर आया है कविता में!! :)