गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

दिव्य प्रेम

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घुलनशील कर गया रूह को,
स्नेह स्पर्श तुम्हारा.
दृढ बंधन बाँहों का पा कर ,
सर्वस्व स्वयं ही हारा...


नयनो की भाषा समझी तो ,
प्रेम अबूझ रहा ना
द्वैत मिटा,एकत्व घटा कब,
ये भी अब सूझ रहा ना
छाया बन कर साथ हो पल पल,
बीता दिन यूँ सारा
दृढ बंधन बाँहों का पा कर
सर्वस्व स्वयं ही हारा ...........


हृदय तेरी धड़कन से गुंजित,
खुशबु साँसों में तेरी
अधरों पर छाप तेरे अधरों की,
बाहें बाँहों में तेरी
दिव्य प्रेम के यज्ञ कुंड में,
मन हारा तन वारा
दृढ बंधन बाँहों का पा कर,
सर्वस्व स्वयं ही हारा ...

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

प्रेम-वंदना

मान नहीं, अभिमान नहीं है
प्रेम है क्या ये ज्ञान नहीं है

पर कोमल मन की अभिलाषा
तुझे समर्पित,मेरी हर आशा

हर पल तुझको खुद में पाऊँ
यादें क्या? कुछ भूल तो जाऊँ.!!

ले सहेज तनिक उर में अपने
जिए हैं तेरे साथ जो सपने


सपनों की दुनिया भी निराली
भरा नहीं कुछ,नहीं है खाली

मेरा मन बन गया है दर्पण
भाव किया हर,पूर्ण समर्पण

दिल चाहे बन जाऊँ मानिनी
कभी रिझाऊँ ,हो जाऊँ कामिनी

नारी मन के भाव सरल हैं
अमृत हैं ये,नहीं गरल हैं

मन तुझ पर अमृत बरसाए
बूँद देख कोई व्यर्थ न जाए

सूर्य है तू और सूर्यमुखी मैं
लगूं अंक हो जाऊँ सुखी में

पिघलूं तेरी उष्ण बाँहों में
तर्पण हो मन इन राहों में

तेरी किरणों से हो आलोकित
कर दूँ मन उपवन प्रकाशित

प्रेममय मन तुझको अर्पित
अहम्,क्रोध, सब हुए विसर्जित

कर दे मन को निर्मल इश्वर
प्रेम के पथ मिलता परमेश्वर

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

चेहरा

लाया था वो
रंगबिरंगा,
सुन्दर सा
हँसता ,मुस्काता
एक मुखौटा
ढक के खुद को
भरमाया था
बहलाया था
सबको उसने...

किन्तु चमकीले
भड़कीले
लगे हुए सब
रंग थे कच्चे
धुल गए बारिश में
भावों की,जो
दिल से निकले,
थे सच्चे

झेल नहीं पाया
वो चेहरा
था बदसूरत
पहले से भी
रंग रोगन करने
दौड़े सब
चिंता सबको थी
अपनी भी..

इस भगदड़ में
उतर गए जब
चेहरों पर से
सभी मुल्लमें
खुद को ही
पहचान न पाए
क्या है बाहर
क्या है दिल में

क्यूँ व्यर्थ तुम
समय गंवाते
चेहरों की इस
सार संभाल में
रहो सहज सुन्दर
नैसर्गिक,समझो
जी लो जीवन
अन्तराल में