गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

चेहरा

लाया था वो
रंगबिरंगा,
सुन्दर सा
हँसता ,मुस्काता
एक मुखौटा
ढक के खुद को
भरमाया था
बहलाया था
सबको उसने...

किन्तु चमकीले
भड़कीले
लगे हुए सब
रंग थे कच्चे
धुल गए बारिश में
भावों की,जो
दिल से निकले,
थे सच्चे

झेल नहीं पाया
वो चेहरा
था बदसूरत
पहले से भी
रंग रोगन करने
दौड़े सब
चिंता सबको थी
अपनी भी..

इस भगदड़ में
उतर गए जब
चेहरों पर से
सभी मुल्लमें
खुद को ही
पहचान न पाए
क्या है बाहर
क्या है दिल में

क्यूँ व्यर्थ तुम
समय गंवाते
चेहरों की इस
सार संभाल में
रहो सहज सुन्दर
नैसर्गिक,समझो
जी लो जीवन
अन्तराल में

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इस भगदड़ में
उतर गए जब
चेहरों पर से
सभी मुल्लमें
खुद को ही
पहचान न पाए
क्या है बाहर
क्या है दिल में

sateek aur sarthak rachna....sachchayi bayan karati hui......badhai