सोमवार, 29 जुलाई 2013

तंग नज़र....

तंग नज़र को कैसे सच्ची बात मिलेगी 
रंग खुरचते ही असली औकात मिलेगी ...

ज़ेहन भर डाला है कूड़े करकट से 
बहते दरिया की कैसे सौगात मिलेगी ....

जलन है दिल में,धुआं उठ रहा आँखों में 
बहम में जीते हो ,कैसे बरसात मिलेगी ...

हम गफ़लत में खेल लिए थे इक बाजी
कब तलक हमको यूँ शह और मात मिलेगी !...

इल्म से रोशन गर ना हुआ चराग-ए-खुद 
कदम कदम पर तारीकी की रात मिलेगी ....



तारीकी- अँधेरा 

रविवार, 14 जुलाई 2013

कुछ तो बात है ..!




सूरज ने झुलसाया था,
काँटों ने उलझाया था ,
पथरीले रस्तों ने मुझको
इधर उधर भटकाया था ,
कोमल भावों की बरसात में
कुछ तो बात है ...!

यायावर था मैं मस्ताना
एक ठांव ना टिकना जाना
किन्तु छूट सका ना मुझसे
घटित एक बंधन अनजाना
तेरे साथ की मुलाक़ात में
कुछ तो बात है.. !!

राह अजानी मंजिल दूर
कदम हो रहे थक कर चूर
फिर भी आँखों में है दिखता
अदम्य हौसला ,रब का नूर
तेरे प्यार की सौगात में
कुछ तो बात है ...!

निशा अँधेरी घोर घटायें
तूफां भी रह रह कर आयें
दृढ़ है विकसित होने को यह
कितने मौसम आयें जाएँ
प्रेम तरु के जड़ औ' पात में
कुछ तो बात है ..!

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

मौन ....



मौनी अमावस्या पर विशेष : आप सबको इस पावन दिन की शुभकामनाओं सहित

#####

मौन हूँ मैं
मौन तुम हो
मौन है
सम्पूर्ण सृष्टि ,
मौन
अनाहत नाद
जिससे
जागृत होती
अंतर्दृष्टि ...

शब्द सीमा से परे
भावों की
अभिव्यक्ति
मौन ,
नाम ,पद और काल
तज कर
मौन में मिलता
'मैं कौन '....

मौन
सिंधु से भी गहरा ,
विस्तृत जैसे
निरभ्र व्योम ,
मौन में ही
श्रव्य होता
नाद पहला
दिव्य 'ओम'..

मौन घटित होता
अंतस में ,
नहीं बाह्य 
कारक है
विचलन नहीं फिर
कोलाहल से
परम शांति
धारक है ..

है अनुनाद
मौन का हममें
तभी तरंगें
मिलती हैं .
हृदय तार
झंकारित हो कर
प्रेम की कलियाँ
खिलती हैं .....

मौन हूँ मैं
मौन तुम हो
मौन ही
अस्तित्व अपना,
शाश्वत साथ 
आदि अनंत से
भ्रम नहीं,
न कोई सपना ....

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

ताजमहल : एक निशानी ??

घुमते हुये
ताज के इर्दगिर्द ,
जाती है नज़र जब
गुंबद और मीनारों पर
उभर आते हैं
ज़ेहन में
चंद खयालात,
होने लगता है
तआज्जुब
तामीर* की
फनकारी पर,
दाद देता है दिल
अजीबोगरीब
कारीगरी पर ,
और सोचते ही
मिस्ल -ए-मोहब्बत*
इसको
उठने लगते हैं
मेरे दिल में
चंद सवालात ....

यक एहसास है
मोहब्बत
किसी छुअन का
होती है
जो महसूस
दिलों की गहराइयों में ,
नहीं हो सकता
इज़हार इसका
दौलत में डूबे
अबस*
इश्तिहारों* की
परछाइयों में....

रहता है जज़्बा
सब कुछ
लुटा देने का
हर आशिक के
दिल-ओ-ज़ेहन में
अपने महबूब की
खातिर,
हर लम्हा
डूब के एक दूजे में
होते हैं
खुद-ब-खुद
मोहब्बत करने वालों के
एहसास ज़ाहिर ...

करने को
ख्वाब पूरा
बेगम अर्जुमंद बानो का
कर दिए थे
ज़मीं आसमां एक
शहंशाह खुर्रम ने,
था वो शहंशाह
सरमायेदार*
लुटा सकता था
अकूत दौलत
लहराने को परचम
अपनी अना* का ,
नाम मोहब्बत का
ले कर
लुटाया था जर*
जी भर कर
और करवा दी खड़ी
एक ऐसी इमारत
लगा था जिसमें
खून-ओ- पसीना
न जाने कितने
मज़लूमों* का.....

बेहद खूबसूरत !
मोहब्बत के नाम पर
हैरां-कुन तखलीक
हर तरफ वाह वाही
मगर
कटे थे जब हाथ
उन दस्तकारों के
जिन्होंने रह के जुदा
सालों तक
अपने कुनबों से,
की थी तामीर
उस शहंशाह के
जाती जूनून की ,
रो दी थी
बिलख उठी थी
मोहब्बत,
सुनाई देती हैं
सिसकियाँ जिसकी
ताज के
गुम्बदों -ओ-मीनारों से.....

कहाँ है
इस इमारत में
मेरा आशियाना
यह तो है
दौलत और ताक़त
से बना इक
इलामत -ए-अना*,
नहीं है निबाह मेरा
गुरूर भरी
तबाही से ,
बसती हूँ मैं जहाँ
होता है
उन दिलों में तो
एहसास-ए-शुक्राना,
देखते हो जिसे
मेरा इख्लास* समझ
ए दुनिया वालों !
वह है फक़त
इक जुनूनी
वहशत का फ़साना.....

ए शाहजहाँ !
कर दिया है दफ़न तूने
इंसानियत को
इस कब्र में
बनवाई है जो
तूने ले के मेरा नाम,
झोंक दी जिन्होंने
तेरे इश्तियाक़* के लिए
ज़िंदगी अपनी
मिला उन्हें
तुझसे
यह अश्क़िया* इनाम !

मरती नहीं
मोहब्बत कभी
इसीलिए
बन नहीं सकती
उसकी कब्र भी,
यह ताजमहल
है बस इक मकबरा
दफ़न हुआ जिसमें
एक झूठा रिश्ता,
हो नहीं सकता
खून के छींटों से सना
यह मरमरी ढांचा
कभी भी
निशानी मेरी...

गूँज रही है
आज भी
ताज के इर्द गिर्द
यही सदा
मोहब्बत की...
ए दुनिया वालों !
खुदा का वास्ता तुमको
मत कहो इसको
निशानी मेरी......


मायने :


तामीर- बनाना /construction


मिस्ल-ए-मोहब्बत - symbol of love


अबस - व्यर्थ /तुच्छ


इश्तिहार- विज्ञापन / advertisement


सरमायेदार -पूंजीपति / capitalist


इलामत-ए-अना- अहम् का प्रतीक / symbol of EGO


जर- पैसा/दौलत


मज़लूम-गरीब/ज़ुल्म का शिकार हुए लोग


हैरां-कुन तखलीक - अद्भुत सृजन /amazing creation


इख्लास -शुद्धता/पवित्रता


इश्तियाक़ - चाहत/लालसा


अश्क़िया-क्रूर/कठोर हृदय

रविवार, 27 जनवरी 2013

तुम आते तो हो...

# # #
पत्तियों की
सरसराहट
भीगी सी आहट
महक लिए
फूलों की
पवन झकोरे से
तुम
आते तो हो .....

स्याह काली
रातों में
घनघोर
बरसातों में
बिजली की
कड़क संग
पल भर के
उजास से
तुम
आते तो हो ....

कोहरे से
घिरी सुबहों में
सुन्न होती
रगों में
कुनमुना सा
एहसास बन
गुनगुनी धूप से
तुम
आते तो हो ....

तपती रेत
आकुल,
प्यासी हिरनी
व्याकुल ,
बरसाने
अमृत प्रेम का
सावन के सघन
घन से
तुम
आते तो हो..

नस नस में
दर्द मीठा
दिल चाहे
अब सजना दीठा
करने पूरे
सब अरमां
पलकों में
स्वप्न से
तुम
आते तो हो....



मंगलवार, 15 जनवरी 2013

नृत्य जीवन का ....


मरघट की
शांति ,
अमन-ओ-सुकून नहीं,
सन्नाटा है ,
देख कर जिसे
होने लगता है
महसूस,
संसार है असार
और
भागने लगता है
इंसान
ज़मीनी सच्चाइयों से ....

हारे हुवों को
मौत में ही
दिखता है
अंतिम सच
क्योंकि
मर के ही
मिलता है
छुटकारा
हार के
एहसासात से..

मौत को
जश्न बनाना,
शमशान का
तांडव नहीं,
नृत्य है
जीवन का ,
सराबोर
सब कलाओं
भंगिमाओं
और
भावों से ...

पड़ती है जब
थाप मृदंग पर
हो उठते हैं
सब साज़
झंकृत
जुड जाता है
नाद से अनहद
और होती हैं
प्रस्फुटित
राग-रागिनियाँ.....

चलायमान मन
हो जाता है स्थिर,
होता है समाहित
अखिल अस्तित्व
चेतन्य में,
आरोह
और
अवरोह के
क्रम में
हो जाता है घटित
अद्वैत,
तज कर
द्वैत को ....

बुधवार, 9 जनवरी 2013

तू झूठा ...

तू झूठा ,
अफ़साने झूठे
सच है तेरा प्यार ,
लफ़्ज़ों में कब
हुआ है मुमकिन
रूहों का इज़हार .....

सुन लेता है
दिल मेरा सब
बोल न पाते
जो तेरे लब
दिल से तेरे
दिल तक मेरे
जुड़े तार ,बेतार .....

नज़रों में नहीं
झूठे सपने
इक दूजे में
अक्स हैं अपने
टिके कदम
ज़मीं पर अपने
रचते सच्चा संसार ....

साथ तेरा ,
मेरी जीस्त का हासिल
मैं तुझ में
तू मुझमें शामिल
कसमे-वादों से
आज़ाद है
तेरा मेरा इकरार ....

तू झूठा ,
अफ़साने झूठे
सच है तेरा प्यार ,
लफ़्ज़ों में कब
हुआ है मुमकिन
रूहों का इज़हार .....