सूरज ने झुलसाया था,
काँटों ने उलझाया था ,
पथरीले रस्तों ने मुझको
इधर उधर भटकाया था ,
कोमल भावों की बरसात में
कुछ तो बात है ...!
यायावर था मैं मस्ताना
एक ठांव ना टिकना जाना
किन्तु छूट सका ना मुझसे
घटित एक बंधन अनजाना
तेरे साथ की मुलाक़ात में
कुछ तो बात है.. !!
राह अजानी मंजिल दूर
कदम हो रहे थक कर चूर
फिर भी आँखों में है दिखता
अदम्य हौसला ,रब का नूर
तेरे प्यार की सौगात में
कुछ तो बात है ...!
निशा अँधेरी घोर घटायें
तूफां भी रह रह कर आयें
दृढ़ है विकसित होने को यह
कितने मौसम आयें जाएँ
प्रेम तरु के जड़ औ' पात में
कुछ तो बात है ..!
2 टिप्पणियां:
मुदिता जी, बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा, सुंदर कोमल भावों का चित्रण पठनीय है.
अति सुंदर
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