शनिवार, 29 सितंबर 2018

मोम हूँ....

 ( मुझको इस रात की तन्हाई की धुन पर)
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जिस्म को रूह के पोशीदा रहे राज़ न दो
छेड़ पाये ना तराना-ए- दिल वो साज़ न दो.....

तेरी हसरत में गुज़ारी है शबे ग़म जग के
नींद आई है दर-ए- सहर पे,आवाज़ न दो ...

वस्ल रूहों का ना पाबंद हुआ जिस्मों से
है ये अंजाम-ए-मोहब्बत नया आगाज़ न दो ...

हमनशीं हो तुम ही हमराज़ हो मेरे जानां
ना चटक जाए ये दिल गैर से अंदाज़ न दो ....

जब निगाहों से ही जज़्बात छलक जाते हैं
नग़्मों में ढलती हैं ख़ामोशियाँ अलफ़ाज़ न दो ....

है निगाहों की मुझे नर्म तमाजत काफ़ी
मोम हूँ संगतराशी के सख़्त अंदाज़ न दो ....

है नज़र सू-ए-फलक ,उड़ना मगर नामुमकिन
पंख पे जीस्त रुकी है अभी परवाज़ न दो .....

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

भगवान नहीं ....


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रिश्तों के
अनचाहे मेले
खेल बहुत से
जिसमें खेले
नहीं हूँ
शामिल
अब बाजी में
बुजदिल हूँ
जाँफ़िशान नहीं....

जग रखता क्यों
मुझसे आशा
गढ़ गढ़ कर
खुद की परिभाषा
भूल कोई भी
हो सकती है
इन्सां हूँ
भगवान् नहीं ......

मकसद मेरा
खुद को जीना
पहन पैरहन
झीना झीना
करूँ लड़ाई
झूठ से कैसे
निर्बल हूँ
बलवान नहीं....

साथ है तेरा
मेरी ताक़त
इश्क़ हुआ अब
मेरी इबादत
दर पे खड़ा
लिए झोली खाली
दीन बहुत
धनवान नहीं  ...

जाँफ़िशान- जान लुटाने वाला

बुधवार, 26 सितंबर 2018

क्यूँ कर है....


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अंजाम-ए-इश्क़ अजीब क्यूँ कर है!!..
हासिल इसको सलीब क्यूँ कर है!!....

है नहीं वो मेरी लकीरों में
फिर भी मेरा नसीब क्यूँ कर है !!...

उसकी फ़ितरत नहीं मोहब्बत की
ग़ैर सा वो अदीब क्यूँ कर है !!..

हाथ छूटे ज़ुबाँ भी तल्ख़ हुई
दिल में अब भी रक़ीब क्यूँ कर है!!..

ख़ामुशी उसकी ज़ुल्म है मुझ पर
ऐसा ज़ालिम हबीब क्यूँ कर है !!!...


मंगलवार, 25 सितंबर 2018

क्या कहिये .....


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किया ज़िन्दगी में शामिल
हमपे ये इनायत क्या कहिये...
सरे बज़्म छेड़ती हैं
आँखों की शरारत क्या कहिये ...

नज़रों से समेटा मुझको
मूँद ली फिर पलकें
महबूब का मेरे, वल्लाह
अंदाज़े हिफाज़त क्या कहिये ....

ख़ामोशी ज्यूँ गा रही है
धड़कन में बसी ग़ज़लें
दरिया-ए - जज़्बात के
बहने की नफ़ासत क्या कहिये.....

रूहों का मिलन अपना
तोहफ़ा है इलाही का
तू मैं हूँ के मैं तू है
अपनी ये शबाहत क्या कहिये .....

रोशन है हर इक ज़र्रा
मशरिक़ से उठा सूरज
इक नूर बरसता है
इस दिन की वज़ाहत क्या कहिये.....

मायने -
शबाहत -similarities
वज़ाहत - भव्यता/सुंदरता

भूलना मुझको भी आसान नहीं...


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उदास हो रही है ख़ामोशी
सुन के उसको ,
कुछ उसको सुना कर जाना.....

भूलना मुझको भी
आसान नहीं है हमदम
मेरी यादों से मगर
खुद को मिटा कर जाना.....

सोमवार, 24 सितंबर 2018

छुअन...

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छुअन से
तेरे एहसासों की
पिघल रहा है
वजूद मेरा
और
बह रहा है
बाज़रिया आँखों के

रविवार, 23 सितंबर 2018

अनागत



झलक दिख जाए
अनअपेक्षित उसकी
रोम रोम में
सिरहन है
प्रतीक्षा में अनागत की
हो गयी पगली
बिरहन है.......

बुधवार, 19 सितंबर 2018

कसक और महक


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एक कसक
तुझसे दूर होने की
एक महक
तुझमें खुद को खोने की

दिखती दोनों ही नहीं
किसी को भी
बात है बस रूह के
महसूस होने की.......

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

नैहर

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छूट जाता है
बचपन
उस आँगन के
छूटने  के साथ ही
जहाँ खेली थी
लाडली
गुड्डे  गुडिया ....

जीती है
यथार्थ
जिसमें
जीवन नहीं
खेल
महज़
गुड्डे गुडिया का ...

किन्तु
जाते ही
नैहर
मिलती है
छाँव जब
माँ के आँचल की
बन जाती है
फिर से
वही नन्ही बच्ची
होती है
खुश जो
नन्हीं नन्ही 
बातों पर .......

छूट जाता है
जब वो ही नैहर
होते ही
दिवंगत
माता -पिता के
होने लगता है
एक बेटी को
महसूस
कि जैसे
छीन ली हो
किसी ने
वो धरती
जहाँ थी
उसकी जड़ें
जहाँ बीता था
उसका अनमोल
बचपन .....

तपते सूरज से
किसी पल में
तरसती है
फिर लाडो
अपना कहे
जाने वाले
किसी सुखद
ठौर के लिए
जहाँ मिल सके
उसे
माँ के आँचल की सी
शीतल छाँव ....

और हो जाती है
तब वो
हमेशा के लिए
बड़ी ......

रविवार, 16 सितंबर 2018

पागलपन


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मेरे पागलपन में
तेरा
यूँ पागलों सा
घुल जाना ,
समझदारी को
करता है
अक्सर
मजबूर
देखने को आइना .....😊

बोला-अबोला



बंध गयी हैं हदें
अपने
वक्त-ए-गुफ्तगू की
जबसे
फेर लेती हूँ
तेरी नज़्मों को
तस्बीह के दानों सा ,
और यूँ जप लेती हूँ
हर उस लम्हे को
जो गुज़ारा था
हमने
बोला अबोला
जिसके 
पाकीज़ा एहसास,
अनकहे अल्फाज़ से
जन्मी थीं 
नज्में बेहद .....