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अंजाम-ए-इश्क़ अजीब क्यूँ कर है!!..
हासिल इसको सलीब क्यूँ कर है!!....
है नहीं वो मेरी लकीरों में
फिर भी मेरा नसीब क्यूँ कर है !!...
उसकी फ़ितरत नहीं मोहब्बत की
ग़ैर सा वो अदीब क्यूँ कर है !!..
हाथ छूटे ज़ुबाँ भी तल्ख़ हुई
दिल में अब भी रक़ीब क्यूँ कर है!!..
ख़ामुशी उसकी ज़ुल्म है मुझ पर
ऐसा ज़ालिम हबीब क्यूँ कर है !!!...
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