रविवार, 28 अक्तूबर 2012

पाने को मूल स्वरुप .....

करते जाते हैं
सतत जतन हम
करने को सिद्ध
स्वयं को,
लाया जाता है
परिवर्तन
निज व्यवहार में
अनुरूप
अन्यों की पसंद के

होता है घटित
रूपांतरण
अंतस में जब हमारे
दिखते हैं
उसके बिम्ब
स्वयं ही
हमारे कृत्यों में
बिना किसी उपक्रम के,

हो कर जागरूक
खुद पर ओढ़े हुए
आवरणों के प्रति ,
हो सकते हैं हम
मुक्त उनसे
पाने को
मूल स्वरुप
स्वयं का
है जो
सहज ,
सरल
और
करुणामय
सदृश
उस परम के ......



सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

राधा हूँ मैं....



"राधा हूँ
मैं,
पाया है
मैंने
स्वयं में
कृष्ण को,
हुआ है
घटित
सहज समर्पण
जा कर परे
नीतियों
एवं
युक्तियों से ......

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

हे आद्या !!

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उकसाता है मुझको
अहम् मेरा
करने को साबित
क्षमताएं मेरी,
भूखा है
दुनिया की वाहवाही का ,
प्यास है इसे
तथाकथित पहचान
पाने की ...
डाल कर अपनी
सुप्त इच्छाओं पर
आवरण
प्रेम,
चिंता ,
त्याग और कर्तव्य के
करती रहती हूँ मैं
पोषित
अपने इस
बकासुर से अहम् को ..


किन्तु ,
करते ही अलग
स्वयं से
दिख गयी है मुझे
वस्तुस्थिति
और
वास्तविकता
इस तथाकथित
अस्तित्व की ...
मैं तो हूँ मात्र
एक अंश तुम्हारा
हे आद्या !
जानती हो तुम ही
मेरी क्षमताओं को
किया है प्रदान जिन्हें
तुम ने ही ..
कब और कहाँ
होना है
मेरे द्वारा
सदुपयोग उनका
करती हो निर्धारित
तुम्ही ,केवल तुम्ही ....

आद्या - माँ शक्ति के लिए प्रयुक्त हुआ एक नाम ...