मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

सम दृष्टि यथा सृष्टि,

१)
सम दृष्टि
यथा सृष्टि,
यह प्रकृति ,
ईश्वर के
दिव्य सृजन की
है अभिव्यक्ति .....

२)
अस्तित्व है,
है नहीं अहंकार,
सहजता है
है नहीं प्रतिकार...

३)
पतझड़ है
इंगित मधुमास
ह्रास पश्चात
होता विकास ....

४)
हो प्रकृति से
यदि तारतम्य ,
घटित हो
हृदयत:
सहज और साम्य...

५)
सुस्पष्ट हों
मन के
भ्रम-विभ्रम गरल ,
बन सके मनुज
विनम्र और सरल...



सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

दर्शन संभावनाओं का ...(आशु रचना )


नहीं करता घोषित
जीवन
प्रत्याभूति
अथवा
प्रतिश्रुति
सुख-शांति
और
सौभाग्य की...

मात्र करता है
उपलब्ध ,
सम्भावना
और अवसर
करने को अर्जित
इनको ....

सहज अवलोकन
यथावत
घटित
विषम का भी
देता है अवसर हमें
करने को गवेषण
उसमें निहित
सकारात्मक
सम्भावना का ....

हो कर चेतन
संभावनाओं के प्रति
ना खोएं हम
सुअवसर,
होता है यह मात्र
स्वजागृति पर
निर्भर ...

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

ना पीड़ा ,ना है संताप.....


छू जाते हैं
मन को मेरे ,
भाव कोई जब
सरल सरल ...
अंतर्मन के
गहन तलों में
हो जाता कुछ
तरल तरल ....

छा जाते हैं
मेघ घनेरे ,
रुंधा रुंधा गला
हो जाता ,
विरह व्यथा
कुछ यूँ बढती है
स्मित मेरा कहीं
खो जाता ..
हृदय समेटूं
अश्रु अपने ,
अंखियों से जाते
छलल छलल ...
अंतर्मन के
गहन तलों में
हो जाता कुछ
तरल तरल .........

अंसुअन का
यह रूप अनूठा ,
ना पीड़ा ,
ना है संताप ...
अर्पण है
आराध्य को मेरे
भोग, प्रार्थना
यही है जाप ..
मन को निर्मल
करने हेतु
बहती धाराएं
मचल मचल .....
अंतर्मन के
गहन तलों में
हो जाता कुछ
तरल तरल ....

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

तेरी नज़रों में अक्स मेरा हो....

तेरी नज़रों में अक्स मेरा हो
मुझे फिर आईना जरूरी क्या !
दिल की धड़कन में यूँ समायी हूँ
मुझको मीलों की भला दूरी क्या...!!

खुश रहे तू उसी में मेरी ख़ुशी
खुश रहूँ मैं उसी में तेरी ख़ुशी
बढ़ता जाता है सिलसिला यूँही
ग़म के आने को हो मंजूरी क्या ....!!

जी रहे गुज़रे हुए माह-ओ-साल
सुर्ख रुखसार हैं कि तेरा जमाल
छलके आँखों के मस्त पैमाने
होश खोने में अब मजबूरी क्या...!!

तेरी नज़रों से खुद को जाना है
खुदी को अपनी यूँ पहचाना है
लम्हा लम्हा जिया है जन्मों को
ज़िंदगी अब लगे अधूरी क्या.....!!!

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

समर्पण


हुआ था समर्पित
एक बीज नन्हा
धरा के
आलिंगन में
और हुआ था घटित
प्रस्फुटन
नव अंकुर का ..

पा कर
वांछित पोषण
हुआ था प्रकट
चीर कर
सीना धरा का
पाने हेतु
असीम संभावनाओं को ...

आंधी ,
तूफ़ान ,
धूप ,
बारिश
सहता हुआ सबको,
बढ़ता रहा
पल पल
हो कर
संकल्पशील
खिलाने फूलों को ..

कर नहीं सकती
विचलित
बाधाएं
प्रगति को
क्योंकि
हुई है सशक्त
जड़ें उसकी
धरती की
अन्तः गुह्यता में...

हो कर सशक्त
जड़ों से
खिला पुष्प
तत्व और सत्व का
और यूँ हुआ
फलीभूत समर्पण
बीज के सर्वस्व का

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

क्यूँ करूँ प्रतीक्षा उसकी


है समाहित
जो रगों में ,
महके मेरी
साँस में ...
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!....

वो बसा है
हृदय में मेरे
ना भले ही
साथ हो ..
हमसफ़र
वो ही है मेरा ,
चाहे
हाथ में ना
हाथ हो
मेरे अँसुवन में
समाया
शामिल है मेरे
हास में
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!.....

रूठना ,
गहरा ना उसका
जान ना पायी थी मैं
हूँ समाहित ,
मैं भी उसमें
मान ना पायी थी मैं
गाम्भीर्य मेरा
है वही,
है बस वही
परिहास में...
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!....

इस जगत में ,
है नहीं ,
अनुकल्प उसका
एक भी ...
राह में
मिलते हैं लाखों
कुछ बुरे,
कुछ नेक भी
ना क्षणिक
विपथन हो कोई
हूँ दृढ़ इसी
विश्वास में
क्यूँ करूँ
प्रतीक्षा उसकी
क्यूँ झूलूँ
आस और निरास में !!!....



गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

भाषा-(आशु रचना )

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भाषा नहीं निर्भर शब्दों पर
सम्प्रेषण होता है मूक
नयन कभी वह कह देते हैं
शब्दों से जाता जो चूक

सुना है मैंने सागर तट पर
लहरों का लयबद्ध संगीत
पाखी सांझ ढले वृक्षों पर
बुला रहे थे अपना मीत

पवन भी पत्तों के कानों में
कुछ कह के इठलाई थी
भँवरे की गुंजन को सुन कर
कँवल कली खिल आई थी

प्रेम की भाषा सच्ची भाषा
मूक प्राणी भी पहचाने
हम मानुस शब्दों में फंस कर
हो जाते इससे अनजाने






रविवार, 5 फ़रवरी 2012

अलग नहीं मुझसे भी ब्रह्म

चाँद का घटना , 
चाँद का बढ़ना 
सत्य नहीं ,
बस मात्र भ्रम 
चंदा सूरज 
मध्य धरा की, 
आवाजाही का है क्रम 

सत्य शाश्वत 
सदा है रहता 
दृष्टि की सीमाएं हैं 
विस्मय कितने 
छुपे हुए हैं 
सृष्टि जिन्हें समाये है 

मैं क्या हूँ !
एक सूक्ष्म चेतना 
किन्तु अंश हूँ 
ईश्वर का ,,
विस्तारित कर सकूँ 
स्वयं को, 
अर्थ मिटे 
मुझ नश्वर का 

नहीं विलग हूँ 
परम ब्रह्म से, 
अलग नहीं 
मुझसे भी ब्रह्म ...
चंदा सूरज 
मध्य धरा की 
आवाजाही का है क्रम ....





शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

गुमशुदा इबारत ....




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रहा 
नाकामयाब 
दरिया 
मेरे इश्क का  
मिटाने को 
इबारतें 
जो उकेरी थी 
माज़ी ने 
दिल पर तेरे ...

गुमशुदा सी है 
उन   
गहरी ,
हलकी ,
धुंधली 
इबारतों की भीड़ में,
मासूम सी 
इक इबारत 
जो लिखी थी 
मैंने 
अपने दिल की  
गहरी स्याही से .....

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

आ गया ऋतुराज फिर ...






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आ गया ऋतुराज फिर
श्रृंगारित धरा आज फिर
पीतवर्ण की चूनर ओढ़े
पिया मिलन की आस फिर

चहक भरी खग की बोली में
उमंग शावकों की टोली में
मदिर हो चली पवन भी देखो
बरस रहा मधुमास फिर
आ गया ऋतुराज फिर .....

फूलों ने है खूब सजाया
आम्रकुंज ने भी महकाया
देखो फागुन की आहट पर
मचल रहा जिया आज फिर
आ गया ऋतुराज फिर ......

उठते नयनों में है प्यार
झुकती पलकों का इकरार
शब्दहीन हो व्यक्त हो रही
हृदय की हर इक बात फिर
आ गया ऋतुराज फिर ......