बुधवार, 27 मार्च 2019

यक़्ता हम न थे.....


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हुनर ए दिलजोई में यक़्ता हम न थे
हुस्ने जाँ के दिल का लख़्ता हम न थे....

बसाया रूह में था जिसकी हस्ती को
उसकी ज़िन्दगी का यक नुक़्ता हम न थे....

टूटते रहे बारहा चोटों से दिल की
बच जाएं बिखरने से यूँ पुख़्ता हम न थे ....

खोजा किये थे खुद को  ग़ज़लों में तेरी
मतला था नज़रे गैर औ' मक़ता हम न थे ....

बिन माँगे होने लगी नवाज़िशें उसकी
अहसासे कमतरी से घिरे शिगुफ़्ता हम न थे ...

(मायने:
हुनर -ए-दिलजोई - दिल को खुश करने वाली बातें करने की प्रतिभा
यक़्ता -अद्वितीय/बेमिसाल
लख़्ता -टुकड़ा /piece
नुक़्ता-बिंदु /small point
बारहा-बार बार
पुख़्ता-मजबूत/strong
मक़ता-ग़ज़ल का पहला शेर
अहसासे कमतरी-हीन भावना/inferiority complex
शिगुफ़्ता-प्रसन्न/विकसित)

रविवार, 17 मार्च 2019

सातवें आसमान पर

बह के
आई है हवा
पूरब से
लायी है
पंखों पे अपने
स्पंदन तेरे
लग गए हैं
पंख अब
ख्वाबों को मेरे
फिर मत कहना
सातवें आसमान पे क्यूँ हो ...!!!!  :)