**************
हुनर ए दिलजोई में यक़्ता हम न थे
हुस्ने जाँ के दिल का लख़्ता हम न थे....
बसाया रूह में था जिसकी हस्ती को
उसकी ज़िन्दगी का यक नुक़्ता हम न थे....
टूटते रहे बारहा चोटों से दिल की
बच जाएं बिखरने से यूँ पुख़्ता हम न थे ....
खोजा किये थे खुद को ग़ज़लों में तेरी
मतला था नज़रे गैर औ' मक़ता हम न थे ....
बिन माँगे होने लगी नवाज़िशें उसकी
अहसासे कमतरी से घिरे शिगुफ़्ता हम न थे ...
(मायने:
हुनर -ए-दिलजोई - दिल को खुश करने वाली बातें करने की प्रतिभा
यक़्ता -अद्वितीय/बेमिसाल
लख़्ता -टुकड़ा /piece
नुक़्ता-बिंदु /small point
बारहा-बार बार
पुख़्ता-मजबूत/strong
मक़ता-ग़ज़ल का पहला शेर
अहसासे कमतरी-हीन भावना/inferiority complex
शिगुफ़्ता-प्रसन्न/विकसित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें