मंगलवार, 30 अगस्त 2011

"अप्पो दिपो भव : "

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लग सकती है
छलांग
आध्यात्म में 

डूब कर
वियोग की गहराई में
या
पा कर
मिलन की ऊंचाई को
होती है जहां
ध्यान की प्रक्रिया
घटित ,
स्वयं को पहचान कर
किन्तु !!
लेना होगा
हर कदम
परिपूर्ण सजगता से
हमको ,
दोनों ही तरफ़
ले जाती हुई
पगडंडियों पर ...
घिरी होती हैं जो
अनजान ,
अँधेरी ,
खाईयों से ,
संभव है तभी
"अप्पो दिपो भव:"
का फलीभूत होना ....

रविवार, 28 अगस्त 2011

वक्त....

देखो..!
समझो..!
जानो ..!
और मानो...!!

नहीं है वक़्त से
बड़ा हिसाबी
कर्मों का कोई ...
दे देता है सजा
वह ,
खुद के
इस क्षण को
बर्बाद
करने वालों को,
हो कर
अप्राप्य उन्हें
अगले ही क्षण .....!!






रविवार, 21 अगस्त 2011

बन मेघ प्रेम का हो छाये ...

बैरागन से प्रीत निभाने
साजन तुम जब से आये
तृषित धरा की प्यास बुझाने
बन मेघ प्रेम का हो छाये

ना जाने कैसा नाता है
हृदय बहा ही जाता है
मेरे गीतों में डूब गए
मुझको ,मुझसे ही लूट गए
साँसे दे कर मेरी नज़्मों को
तुम दबे पाँव दिल में आये
बन मेघ प्रेम का हो छाये ...

पा प्रेम तेरा इतराऊं मैं
रहूँ कहीं , कहीं भी जाऊं मैं
एहसास तेरा है साथ मेरे
हैं हाथों में अब हाथ तेरे
अपने होने का अर्थ मिला
जब देख मुझे तुम मुस्काए
बन मेघ प्रेम का हो छाये ....

कण कण में प्रेम की धारा है
महका ज्यूँ उपवन सारा है
है रूप इसी का तो भक्ति
देखो ना प्रेम की ये शक्ति
हो पार सभी व्यवधानों से
हम इक दूजे में घुल पाए
बन मेघ प्रेम का हो छाये

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

बदन लिबास है ..(तरही गज़ल )

'ये गर्म राख शरारों में ढल ना जाये कहीं "

दुष्यंत कुमार जी के इस मिसरे का प्रयोग करके लिखी गयी है यह तरही गज़ल ..आप सबका स्नेह मिलेगा ऐसी उम्मीद करती हूँ


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कुरेदो मत,बुझा अरमां मचल ना जाये कहीं

ये गर्म राख शरारों में ढल ना जाये कहीं


फरेब नींद को दे कर भी डर ये रहता है

मेरी नज़र में कोई ख़्वाब पल ना जाए कहीं


बना दिया है दीवाना मुझे जुनूं ने तेरे

जहां की सुनके कदम फिर संभल ना जाये कहीं


कि कर लूं बंदगी ,उस बुत की ,होके मैं काफ़िर

घड़ी ये इश्क की अबके भी टल ना जाए कहीं


यकीन कर तो लें ,ये इश्क एकतरफ़ा है

इसी यकीन पे ,ये दिल बहल ना जाये कहीं


बदन लिबास है, न कैद करना 'रूह' इसमें

के उसकी आग से ये जिस्म जल न जाए कहीं