बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

नैनन रंग बरसाए....


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पद्मनाभ,हे मुरली मनोहर
हृदय पुष्प है तुझको अर्पण
छवि में मोरी छवि है तेरी
जब जब देखूँ दर्पण....

मन खिले पलाश सा माधव
तन सिंदूरी छाया
हैं रक्ताभ कपोल जवा सम
ज्यूँ गुलाल छितराया....

हो प्रत्यक्ष हे!श्याम सांवरे
हरो वेदना मोरी
फागुन बिखरा चहुँ दिसा में
चुनरी मेरी कोरी....

फीकी तुझ बिन होरी कान्हा
रंग न कोई भाये
दरस मिले गोविंदा का जब
नैनन रंग बरसाए.....

द्वैत मिटे अद्वैत घटे अब
रोम रोम हर्षाओ
प्रीत में केशव रंगो स्वयं को
मुझ में तुम ढल जाओ.....

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

जीने का सहारा क्यूँ है

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तू नहीं फिर भी तेरा ,हर सिम्त नज़ारा क्यूँ है
हर शै में झलकता ,तेरे दिल का इशारा क्यूँ है ......

दिल बहलता ही नहीं ,लाख मनाऊँ इसको
पूछता मुझसे ही ,के दूरी ये गवारा क्यूँ है .....

फ़ैसला दुनिया का ,के तू कुछ नहीं है मेरा
मेरी हर साँस पे फिर ,नाम तुम्हारा क्यूँ है .....

देख के एक झलक ,मुस्कुरा उठते हैं  लब
आतिशे जज़्बात भड़कने का ,तू शरारा क्यूँ है .....

काम दुनियावी, बदस्तूर निभाये जाते हैं
संग लम्हों का बना,जीने का सहारा क्यूँ है ....

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

बीज है विद्रोह.....


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बीज है विद्रोह
बदलाव का
समेटे हुए
असीम संभावनाएं स्वयं में,
दबा होता है वो
मानव मन की गहराईयों में
संस्कारों,व्यवस्थाओं, मान्यताओं,
शास्त्रों की परतों में
उठा सकता है
प्रश्न प्रत्येक प्रतिकूलता पर
हो कर जागृत
त्वरित एवं तत्पर....

सजग हो यदि विद्रोही
अन्तस् से उठते
विरोधी सुरों के लिए
दे सकता है दिशा
अपनी सोचों को
जो तोड़ सकती है
जड़ता को
करती है प्रहार
व्यर्थ मान्यताओं पर
ला सकती है बदलाव
यथास्थितियों में
समग्र की बेहतरी के लिए 
घटित कर
क्रांतियों को....

दे देता है यही विद्रोह
मार्ग अराजकता को
हो कर दिशाहीन अहंकारी
भटकता हुआ यत्र तत्र
बन कर संकीर्ण
और खुदगर्ज़
उठा कर विरोध को
सिर्फ विरोध के लिए
या खुद को सही
साबित करते हुए
अपनी क्षुद्र भूलों पर
पर्दा डालने के लिए
बिना जाने समझे उसके
विस्फोटक परिणामों को......

विद्रोह है
सहज स्वभाव
मानव का,
विवेकपूर्ण आकलन
सजगता
स्पष्टता
और
स्वीकार्यता
देती है
सकारत्मक और रचनात्मक
स्वरूप उसको
करके परिष्कृत
स्वयं के अंतर को.....