गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मीठी सी सरगोशी ....


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कूचा-ए-दिल में आज फिर
मीठी सी सरगोशी है
छू गयी हैं रूहें दफ़अतन
जिस्मों पे मदहोशी है ....

ये मजलिसें हैं मौन की
नज़रों से होती गुफ़्तगू
कहने सुनने का है सिलसिला
पसरी लब पे ख़मोशी है...

जगती हुई दो आँखों में
कुछ ख़्वाब यूँही पल बैठे है
राहे मंज़िल पर साथ तेरे,
कदमों में पुरजोशी है....

माफ़ी ख़ुद से भी माँग चुके
रिश्तों में बदगुमानी की
हुए हैं रोशन दिल ओ ज़ेहन
नज़रों में बाहोशी है ....

मायने:

कूचा-गली
सरगोशी-फुसफुसाहट
दफ़अतन-अचानक
मजलिस-बैठक
गुफ़्तगू-बातचीत
पुरजोशी-पूरा जोश
बदगुमानी-संदेह
बाहोशी-सजगता

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

रस्में आदाब की .....


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झूठी अना ने दी हमें भटकन सराब की
हस्ती है बस हमारी ज्यूँ इक हबाब की.....

दुनिया में बज़ाहिर करता है ख़ुद से दूर
पहलू में तारीकी पे है इनायत चराग की ...

सरूर तेरे इश्क़ का , काफ़ी है हमनफ़स
क्यूँ खोलें हम तू ही बता बोतल शराब की...

होकर भी ना होते, हो जाते हैं ना होकर
फ़ितरत ही कुछ ऐसी है मेरे जनाब की...

देखें भी ना पैगाम जो ,लिफ़ाफ़े को खोल कर
क्या उनसे तवक्को रखूँ ख़त के जवाब की.....

ओझल है चश्म से मगर रूह में उतर गई
दामन से उनके आ के यूँ ख़ुशबू गुलाब की...

खुद को लपेट लेते हैं बाहों में खुद की ही
आरिज़ पे निशाँ ए बोसा है तामीर ख़्वाब की...

मुमकिन नहीं है वस्ल इस दौर-ए-वक़्त में
आओ निबाह लें दूर ही से रस्में आदाब की...

मायने:
अना-घमंड
सराब-मृगतृष्णा
हबाब-पानी का बुलबुला
बज़ाहिर- दिखावा
तारीकी-अंधेरा
तवक्को-उम्मीद
चश्म-आँख
आरिज़-गाल
तामीर- पूरा होना
वस्ल-मिलन