####
अपने इश्क में हमने जानम
खुद को ऐसा साधा है
झरते हैं भाव ,मेरे दिल से
लफ़्ज़ों में तूने बाँधा है ..
बातें जब किसी और से होती
अंत सभी हो जाती हैं
किन्तु बातें हम दोनों में
साँसों जैसी चल जाती हैं
एक खतम हो तो झट दूजी
आ जाती बिन बाधा है
झरते हैं भाव ,मेरे दिल से
लफ़्ज़ों में तूने बाँधा है ..
जब भी तेरी ओर निहारूँ
तू नहीं अकेला सा दिखता
नयनो में छवि दिखती मेरी
इक साये से ज्यूँ तू घिरता
कृष्ण हों जग में कहीं अवस्थित
रों रों से दिखती राधा है
झरते हैं भाव ,मेरे दिल से
लफ़्ज़ों में तूने बाँधा है ..
घटित हुआ है प्रेम हमारा
रस्म रिवाज़ों से हट कर
सदा साथ इक दूजे के हैं
नहीं किन्तु जग से कट कर
सम्पूर्ण किया इक दूजे को
ना हममें अब कोई आधा है
झरते हैं भाव ,मेरे दिल से
लफ़्ज़ों में तूने बाँधा है ..
3 टिप्पणियां:
झरते हैं भाव मेरे दिल से
लफ्जों में तुने बंधा हैं....
बहुत खूब...
अच्छी कविता बनी है.
bahut komal kavita, sundar bhaav aur abhivyakti, shubhkaamnaayen.
Hi..
प्रियतम से जो चाह तुम्हारी...
कविता में वो दिखती है...
कुछ मीठे अहसासों से ये...
परिपूर्ण सी लगती है...
बात किसी से भी कर लो तुम...
पर प्रियतम की बात अलग...
मन के अहसासों से तेरे...
मन के हैं हर भाव अलग...
नयनों में उसके छवि देखो...
यही समर्पण कहलाता....
प्रियतम से कितने हो समर्पित...
भाव यही है दर्शाता....
जग के साथ भी रहकर के तुम...
इक दूजे के संग रहे...
मन में भावों के संग जैसे....
मन की हर उमंग रहे...
सुन्दर भाव...मखमली अहसास....
दीपक.....
एक टिप्पणी भेजें