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लिबास से
उसके
लगाया था
कयास
उसकी
शख्सियत का
कितनी
गाफिल थी ,
लिबास से
होता है
अंदाज़ा
फक़त
हैसियत का
वो भी तो
होता है
गुमाँ
ज़्यादातर
निगाहों का
ही
लेकिन
दिल पर
नहीं होता
असर
कभी,
ऐसी
किसी
कैफियत का ....
लिबास से
उसके
लगाया था
कयास
उसकी
शख्सियत का
कितनी
गाफिल थी ,
लिबास से
होता है
अंदाज़ा
फक़त
हैसियत का
वो भी तो
होता है
गुमाँ
ज़्यादातर
निगाहों का
ही
लेकिन
दिल पर
नहीं होता
असर
कभी,
ऐसी
किसी
कैफियत का ....
9 टिप्पणियां:
सुन्दर और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति. शुभकामनायें.
कितनी कुशल और निपुण बुनाई है इस लिबास की...बहुत ही सुन्दर.
बहुत सही आंकलन ..लिबास देख ही धोखा खा जाते हैं ...
लिबास ने बहुतों को ठगा है.
लिबास सख्शियत का आईना तो नही है ..
खरी-खरी!
mudritaa bhn libaas pr aapne bhut khun chnd alfaazon men likh daalaa he amdaaz achchaa lgaa bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan
आजकल ज्यादातर लोग आदमी की पहचान तो उसके कपड़े से करते हैं
अच्छा व्यंग्य किया है आपने.
एक बेहतर रचना के लिए आपको बधाई
मुदिता जी...
कपडे कभी नहीं दे पाते...
मन के भावों का कोई ज्ञान...
तन ढंकने से ज्यादा उनकी..
होती न कोई पहचान...
सुन्दर भाव...
दीपक...
deh bhi to hai
vstr sa ek bahy aavran
aatma ti shuddh hi hai
fir kyon aakarshit ho
kya tan aur kya man
aapki yah kavita ati uttam
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