शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

अहम् ....

#####

अहम् तुष्ट करने को मानव
क्या क्या ढोंग रचाता है
धोखा देता 'स्वयं' को पहले
फिर जग को भरमाता है

झूठे चेहरे लगा लगा कर
बिना बात मुस्काता है
हीन भावना से बचने को
उपद्रव ढेर मचाता है

ढूंढ के कमियाँ दूजों में वह
गुण अपने गिनवाता है
मूर्ख बड़ा ये भी ना जाने
सत्य कहाँ छुप पाता है

चाह रहे ये , पाए प्रशंसा
खेल यूँ खूब रचाता है
दिखा के नीचा औरों को पर
खुद नीचा बन जाता है

ठेस जरा सी सह नहीं पाए
अहम् तुरंत उकसाता है
राई बराबर बात हो कोई
पर्वत वो बनवाता है

'स्वयं' जागृत हो जाता जब
'अहम्' टूटता जाता है
कोमल नम्र उदार "स्वयं' से
'अहम्' हारता जाता है.......

4 टिप्‍पणियां:

Avinash Chandra ने कहा…

सच...एकदम सटीक सच.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अहम् तुष्ट करने को मानव
क्या क्या ढोंग रचाता है
धोखा देता 'स्वयं' को पहले
फिर जग को भरमाता है

एक दम सटीक....सुन्दर कृति ...

rashmi ravija ने कहा…

ढूंढ के कमियाँ दूजों में वह
गुण अपने गिनवाता है
मूर्ख बड़ा ये भी ना जाने
सत्य कहाँ छुप पाता

बड़ी कुशलता से सच को उजागर करती रचना...

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Duniya main sab hi to rahe hain..
Apne apne aham ke sang..
Koi enke sang main hai khush..
Koi dikha 'swaym' ke sang..

Dooje ko jo dikha ke neecha..
Koi uncha ban paata..
ESHWAR ko bhi dikha ke neecha..
Insaan uncha ban jaata...

Khoobsorat kavita ...hamesha ki tarah..

Take care..

Deepak..