शनिवार, 14 अगस्त 2010

खौफ नहीं रहजन का ..दौलत को मेरी

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स्व-ज्ञान की
नन्ही गठरी
चली थी
संभाले
अनजान
राहों पर ....
किया इजाफ़ा
रहबरों ने उसमें
अपनी
दौलत से
जो कमाई थी
उन्होंने
चलते हुए
इन्ही राहों पर
मुझसे पहले ...
बढ़ता गया
सरमाया मेरा
काबिल हुयी
दे पाने में
मैं भी
निरंतर बढ़ती
दौलत को...
खोली है गाँठ
जबसे
गठरी की
मैंने,
होती जाती हूँ
और भी अमीर
और
शादमां मैं
क्यूंकि
नहीं हूँ
खौफ़जदा
किसी
रहजन
के होने से ......

1 टिप्पणी:

कडुवासच ने कहा…

... बेहतरीन अभिव्यक्ति !!!