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प्रीतम के नैनो से छलके
अप्रतिम स्नेह की धार
भीगे तन मन उसमें मेरा
ज्यूँ सावन की प्रथम फुहार
निज को जान रही हूँ मैं भी
उनकी नज़रों से पढ़ कर
चंचल हूँ मैं हिरनी जैसी
लावण्य कुसुम से बढ़ कर
उपमाएं दे दे कर प्रिय ने
रूप दिया है निखार
भीगे तन मन उसमें मेरा
ज्यूँ सावन की प्रथम फुहार
तत्पर उनकी एक चाह पर
सर्वस्व करने को अर्पण
हृदय में बसते उनको मेरा
तन मन पूर्ण समर्पण
नहीं है कुछ भी मेरा जिसपे
उनका ना अधिकार
भीगे तन मन उसमें मेरा
ज्यूँ सावन की प्रथम फुहार
अस्तित्व समाया इक दूजे में
पृथक नहीं अब हम दो
उनमें मैं हूँ या मुझमें वो
गहन भेद है ये तो
मेरी आँखों से छलके है
हृदय का उनके प्यार
भीगे तन मन उसमें मेरा
ज्यूँ सावन की प्रथम फुहार .......
1 टिप्पणी:
Hi..
Priyatam se anuraag tumhara..
Dikha hai puri kavita main..
Prem hi prem baha ho jaise..
Teri kavita ki savita main..
Ek rup priyatam ka tujh sang..
Dono ekikaar rahe..
Tere 'NIJ' main bhi tujh sang hi..
Priyatam angikaar dikhe,.
Sundar kavita..
Deepakg..
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