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तुम मुझसे पहले आये थे
चले गए फिर मुझसे पहले
बड़ा भाई ना मिल पाने के
ज़ख़्म कभी मेरे ना सहले
जब भी कहती तुम होते गर
मैं कितनी खुशकिस्मत होती
माँ कहती थी ,तुम होते तो
मैं फिर इस घर में ना होती
बचपन यौवन सब बीता यूँ
नेह तुम्हारा मिल ना पाया
वंचित रही भाव से ,जो था
भ्रात सुरक्षा का हमसाया
तुमको ढूँढा मैंने उसमें
जरा भी मन जिससे जुड़ पाया
पर राखी बंधवा कर भी वो
बहन मान ना मुझको पाया
थोथे होते नाम के रिश्ते
भाव ना अंतर्मन से आते
भाई बहन का नाम लगा कर
अपमानित क्यूँ यूँ कर जाते
तुम मुझसे पहले आये थे
चले गए फिर मुझसे पहले
बड़ा भाई ना मिल पाने के
ज़ख़्म कभी मेरे ना सहले
जब भी कहती तुम होते गर
मैं कितनी खुशकिस्मत होती
माँ कहती थी ,तुम होते तो
मैं फिर इस घर में ना होती
बचपन यौवन सब बीता यूँ
नेह तुम्हारा मिल ना पाया
वंचित रही भाव से ,जो था
भ्रात सुरक्षा का हमसाया
तुमको ढूँढा मैंने उसमें
जरा भी मन जिससे जुड़ पाया
पर राखी बंधवा कर भी वो
बहन मान ना मुझको पाया
थोथे होते नाम के रिश्ते
भाव ना अंतर्मन से आते
भाई बहन का नाम लगा कर
अपमानित क्यूँ यूँ कर जाते
2 टिप्पणियां:
bahut hi behatareen rachna...
मुदिता जी...
एकदम सत्य बताया तुमने...
भाव ह्रदय के जो समझाए...
गर दिल से न माने कोई....
राखी ही क्यों बंधवाए....
भाई-बहन का नाता स्नेहिल...
हर नाते से प्यारा है...
जिसने भी पाया है इसको...
वो तो जग से न्यारा है...
दीपक...
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