अन्धकार है
कितना गहरा
दृष्टि को
सूझे ना कुछ भी,
दिशाहीन सा
भटके राही
भेद कोई
बूझे ना कुछ भी........
कितना गहरा
दृष्टि को
सूझे ना कुछ भी,
दिशाहीन सा
भटके राही
भेद कोई
बूझे ना कुछ भी........
दूजों के
अनुभव से चाहे
राह सही
मुझको मिल जाए,
अनजानी
मंज़िल की जानिब
डरते डरते
कदम बढ़ाये........
अनुभव से चाहे
राह सही
मुझको मिल जाए,
अनजानी
मंज़िल की जानिब
डरते डरते
कदम बढ़ाये........
दिशा मिलेगी
सही तभी जब
खौफ़ न होगा
अनजाने का,
भटकन का डर
त्याग हृदय से
निश्चय
परम सच को
पाने का.........
सही तभी जब
खौफ़ न होगा
अनजाने का,
भटकन का डर
त्याग हृदय से
निश्चय
परम सच को
पाने का.........
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3 टिप्पणियां:
सुन्दर गीत
ब्रह्मांड
बहुत सुंदर भाव !!
Bahut sahee kaha hai. jab tak naee rahen na talasho naee unchaeeyoan ko choona mushkil hai.
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