शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे ....

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प्रेम भक्ति से पूर्ण भोग है
अर्पण तुझको भगवन
ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे
हो आनंदित मन तन

अहम् क्रोध विद्वेष को तज कर
हृदय करूँ मैं निर्मल
निर्लिप्त रहूँ मैं जग में रह कर
ज्यूँ पंकज कोई खिल कर
प्रेम तुम्हारा राह दिखाए
रौशन हो हर कण कण
ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे
हो आनंदित मन तन .......

भक्ति मेरी निश्छल ईश्वर
नहीं पास कुछ मेरे
मन मंदिर में बसा के तुझको
पाँव पखारूँ तेरे
जो कुछ भोगा जग में मैंने
सर्वस्व तुझी को अर्पण
ग्रहण करो तुम भाव ये मेरे
हो आनंदित मन तन.....

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर भाव!

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...आभार

Avinash Chandra ने कहा…

मधुर...श्वेत... :) :) बहुत ही प्यारा सा...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर भावों से भरी रचना ...

खोरेन्द्र ने कहा…

bahut hi sundar bhakti

aur samparpan ke bhav hain