मंगलवार, 17 अगस्त 2010

बोझिल......(आशु रचना )


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मिलन के
पलों को,
जुदाई की
सदियों से
जोड़ने वाला
क्षणों का पुल
अकेले
पार करते हुए
बोझिल
हो उठती हूँ
मैं ....
चलो ना!!
जुदाई की
सदियों तक
चले
हाथों में हाथ लिए
इस पुल पर
और
विदा के
इस क्षण को
संजो कर
गुज़ार दें
उन सदियों को,
पुल के
उस तरफ
घटित
मिलन के
पलों को
देख
अपने
साथ का
एहसास लिए ........

5 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

जुदाई की सदियों तक चले हाथों में हाथ लिए ...
उलटबांसी ख्वाहिशों की ..!

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Subah subah hi virah ki baatain..
Kya tabiyat kuchh hairan hai..
Milan ki khushion se kyon dikhti..
Humko adhik nirasha hai..

Kya baat hai..

Deepak..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत...

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन की भावनाओं को खूब अभिव्यक्त किया है ..