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मैं चरणों की हूँ धूल तेरे
तुम भाल का मेरे चन्दन हो
रों रों गुंजारित है जिससे
मुझमें बसते स्पंदन हो
कुछ और ना जाना जब से तुम
महके मेरे इस जीवन में
मेरे होठों की हर हंसी हो तुम
हृदय का हर इक क्रंदन हो
मैं चरणों की हूँ धूल तेरे
तुम भाल का मेरे चन्दन हो .....
पलक पांवड़े बिछा के मैं
करूँ प्रतीक्षा पल पल यूँ
तुम कहो,क्या तुमको लगता है ?
ये प्रेम मेरा एक बंधन हो !!
मैं चरणों की हूँ धूल तेरे
तुम भाल का मेरे चन्दन हो
बेपरवाह खुद को दिखलाते
पर साथ सदा रहते प्रतिपल
दुर्गम राहों पे चलने का
एकमात्र तुम्ही अवलंबन हो
मैं चरणों की हूँ धूल तेरे
तुम भाल का मेरे चन्दन हो
5 टिप्पणियां:
REALLY AWESOME..
AUR ISKI LAY NE ISE AUR VISHIST BNA DIA HAI...
BADHAI SWIKAREN..
बहुत सुन्दर!
मुदिता लाजवाब कविता है। बहुत अच्छा लिखती हो। आशीर्वाद।
@vineet thaks a lot...
@ sameer lal ji..bahut abhaar
@ Nirmala ji..aap mere blog par aayi main dhany hui.. aapka ashirwaad sar mathe ..:)
तुम कहो क्या तुमको लगता है?
ये प्रेम मेरा एक बंधन हो....
बहुत ही वजनदार पंक्तियाँ...कितने अर्थ समेटे है जाने..
बहुत ही बढ़िया
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