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आसमां , ये मन का मेरे
विस्तृत नील गगन के जैसा
अरमानों के छाते बादल
चित्र बनाते कैसा कैसा ...
कभी श्वेत रुई से बादल
बिल्ली जैसे बन के दिखते
कभी सलेटी स्याही बन कर
नभ में कुछ आखर से लिखते
पढूं वो आखर ,समझ न पाऊं
ज्ञान मिला मुझको न ऐसा
अरमानों के छाते बादल
चित्र बनाते कैसा कैसा ....
कभी सूर्य को ढक कर बादल
दे जाते ठंडक सी मन को
कभी शीत में उसी वजह से
ठिठुरा जाते ,कोमल तन को
हर मौसम में रंग बदलते
रूप नहीं कोई इक जैसा
अरमानों के छाते बादल
चित्र बनाते कैसा कैसा ....
मंत्रमुग्ध कर जाते मुझको
आशा की किरने बिखरा कर
चित्रकार की कूची ने ज्यूँ
ढेरों रंग दिए छितरा कर
अलग अलग रंग जब जब देखूं
मन भी रंग जाता है वैसा
अरमानों के छाते बादल
चित्र बनाते कैसा कैसा ....
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना है। बधाई स्वीकारें।
बहुत सुन्दर बादल और आसमां...
अक्षर कि जगह आखर शब्द कह कर मुझे पढने में ज्यादा मज़ा आया ...:):)
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत बढ़िया !!
आप सभी का शुक्रिया...
दीदी ,
आपके कहे अनुसार अक्षर को आखर में बदल दिया...शुक्रिया...
Hi..
Dekhe humne bhi tere sang..
Badra ke sundar se chitr..
Wah..sundar kavita..
Deepak..
bahut khubsurat...bahut hi khubsurat :)
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