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कितना
नाज़ुक जुडाव
है ना
छिपकली
और
उसकी पूँछ
के दरमियाँ ..
हल्के से ही
आघात से
पूंछ
अलग
हो जाती है
और
दर्द का
एहसास
तक नहीं होता
उससे
अब तक
जुडी हुई
छिपकली को..
जुदाई की
तड़प से
तब तक
छटपटाती है
पूंछ
जब तक
उसमें
एक भी
कतरा
जान
होती है
बाकी
और
छिपकली
उस
जुदा हुई
पूंछ से
बेखबर
पा लेती है
एक नयी
पूंछ
कुछ ही
दिनों में ...
मैंने
महसूसा है
अपने रिश्ते में
उस पूंछ का दर्द ............
9 टिप्पणियां:
bahut pyaari kavita... sach kahi andar maine bhi mahsoos kiya isey...
mudritaa bhn ji apane aek samany baat men kitni gmbhirta tlash ki he bs isi adaa ne hen aapka fen bnaa diyaa pnkhe vaala fen nhin lekin haan ghumne vala fen. akahtar khan akela kota rajsthan
ओह ..कितना सही अवलोकन ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
बेहतरीन...बहुत ही सुन्दर प्रतीक चुना है रिश्तों को नयी परिभाषा देने का|
बहुत बहुत शुभकामनाएं|
ब्रह्माण्ड
आपका ब्लॉग पर आज पोस्ट पढ़ी बहुत अच्छा लिखती है आप ..बहुत पसंद आया आपका लिखा हुआ शुक्रिया
उफ़ ! यह वेदना का अहसाह और इतना सही बखान .....बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर ! रिश्तों के अलगाव का सटीक चित्रण !
और उस दर्द को अच्छे से अभिव्यक्त भी किया कविता के रूप में
ओह!! बहुत भावपूर्ण...क्या बात है!!
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