शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

'हम्म'.....


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उमगता हुआ
आता हूँ मैं
समेटे
हृदय में अपने
कहने को तुमसे
हज़ार शब्द ,
लाखों बातें ,
करोड़ों सपने
और
अपने ही
अंतरमन की
घुटती चीखें
तुम तक
पहुँचाने को ....
पुकारता हूँ तुम्हें
और तुम्हारा
वो मासूम सा
"हम्म''
भुला देता है
मुझे सारे
शब्द
बातें
सपने
और
चीखें बदल जाती हैं
इस
गहन स्वर के
संगीत में
जो बहने लगता है
तुम्हारे मन से
मेरे मन की ओर
और
ठगा सा
खड़ा रह जाता हूँ मैं ..
कुछ बोल नहीं पाता ...........
क्या है इस 'हम्म' में ???

10 टिप्‍पणियां:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छी...सुंदर भाव और सुंदर प्रस्तुति...बधाई

माधव( Madhav) ने कहा…

nice exprssion

arvind ने कहा…

achhi rachna our utane hi sundar bhaav...

Avinash Chandra ने कहा…

wakai...kuchh..bahut kuchh hai is hmmm! me :)

रंजू भाटिया ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अले वाह, आपका ब्लॉग तो बहुत खूबसूरत है और आपकी कविता कित्ती प्यारी...

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नन्हीं 'पाखी की दुनिया' में भी आयें.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हम्म ..... बहुत बढ़िया ...कुछ तो है इस हम्म में ..

राजकुमार सोनी ने कहा…

कुछ तो है इस हम्म में
बहुत दम है इस हम्म में

Udan Tashtari ने कहा…

हम्म!

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर ...
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