सोमवार, 13 सितंबर 2010

अपरिवर्तित

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बदलाव
नज़र आते हैं
जब सोचते हैं
हम
बीते हुए पल ..
या
हमारी चाहतों से
अलग होते हैं
आने वाले पल ..

देखना
समय से पीछे
या
फिर आगे
देता है एहसास
परिवर्तनशीलता का ..
और
हो जाती है
शिकायत
अनकही सी
मन में ,
"तुम अब पहले जैसे  नहीं रहे ! '
या
उम्मीद इस वादे की
"तुम हमेशा ऐसी ही रहोगी ना ! " ...

संभव नहीं है
इन कसौटियों पर
खरा उतरना
किसी का भी
किन्तु
कसौटियों से परे
होता है महसूस
एक
कहा-अनकहा साथ
बिना किसी वादे
और
घोषणाओं के
घुला हुआ जैसे
अपने ही सत्व में ...

सिर्फ वही है
अपरिवर्तित
इस पल पल
परिवर्तित
दिखने वाली
जिंदगी में .....

3 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इसे बाद में पढूंगी ...


चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना ( किनारे ) 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सच कहा है ..साथ अपरिवर्तित है ...बाकी हर इंसान परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है ...अच्छी रचना

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

सुंदर!!