सोमवार, 27 सितंबर 2010

बाढ़....

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कल तक
एक दूसरे के
खून के प्यासे
बुधिया और हरिया,
आज
सिमटे बैठे हैं
अपने परिवार
और
ढोर डंगरों को
साथ लिए
काकोया के
पुल पर
दो हाथ
मिली जगह में.
बंधाते हुए ढाढस
एक दूसरे को
कितने सालों बाद
दोनों भाई
मिल जुल कर
रोटी खा रहे हैं...


इस बार
उनकी
दुश्मनी
की वजह
को
रामगंगा
बहा जो ले गयी.......



4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सटीक अभिव्यक्ति!

समयचक्र ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति...

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......

पढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पार की जाये नदी ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....कम से कम बाढ़ का एक फायदा तो हुआ ...