शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

अंतिम छवि....

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हर दिन
तुम्हारे
दफ्तर जाते समय
मेरा तुम्हें
मुस्कुराते हुए
विदा करना
दिनचर्या सी है
तुम्हारे लिए ....
लेकिन
मन की
तमाम
ऊहापोहों के बावजूद
मैं
मुस्कुरा के देती हूँ
विदा तुमको
कि
कहीं किसी दिन
लौटने पर तुम्हारे
गर मैं ना मिलूं
तो
अंकित रहे
हृदय में तुम्हारे
मेरी
मुस्कुराती हुई
अंतिम छवि ......



2 टिप्‍पणियां:

दीपक बाबा ने कहा…

भावुक ...........

इत्ता ही कह सकते हैं.

Avinash Chandra ने कहा…

:O

आज नो कमेंट्स...