शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

कुछ यूँही ....

कभी कुछ पल के लिए कुछ एहसास मन में आ जाते हैं॥उन्ही को शब्दों में ढाला है..


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प्राथमिकता ..

मेरी
प्राथमिकताओं में
सर्वोच्च
होना
तुम्हारा,
प्रतिपादित
तो नहीं
करता ना ,
तुम्हारी
प्राथमिकताओं में
मेरा
सर्वोच्च
होना ......

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नज़र .....

देखा है
जबसे
खुद को,
तेरी नज़र
से
जानम ,
आईना भी
हैरान है
कि कौन हैं
ये
खानम ॥:)

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इंतज़ार .....

दिखता नहीं
खत्म सा
सिलसिला
इंतज़ार का ....
सुना था ,
अब जान लिया ,
है ये ही
सिला
प्यार का


2 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

sundar

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

मुदिता जी, गागर में सागर जैसी हैं ये प्यार की क्षणिकाएँ।
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प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?