कफस की क़ैद में
कर सकते हो
इस जिस्म को पाबंद
मगर सय्याद मेरे
निगाहों में बसा
आकाश मुझसे
कैसे छीनोगे...
करा ले जाएगा
आज़ाद इक दिन
ये ही जज़्बा
जिस्म भी मेरा
पतंग मन की उड़ेगी
डोर तुम फिर
कैसे खींचोगे ...
बनाया इक चमन
बाड़ों, दीवारों से
घिरा तुमने
जो गुल खिलता है
खुद दिल में
उसे तुम
कैसे सींचोगे...
1 टिप्पणी:
Hi Mudita ..
Its a lovely poetry ..keep writing ..You have established yourself as an expert now ..
My wishes are always with you ...!!!
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