गुरुवार, 7 जनवरी 2010

जुगलबंदी मौन की

होती है
कानों पर
तेरी साँसों की
आहट
चुप हो जाती हैं
जुबां
बोलने लगती हैं
आँखें
धडकता है
दिल
दहकने लगती हैं
सांसें
शुरू होती है
गुफ़्तगू
दिल की दिल से
परे लफ़्ज़ों से
कहती हूँ मैं
सुनता है तू
गुनगुनाती है
ख़ामोशी
नज्में तेरे दिल की
मिल जाते हैं
तेरे लब
मेरे लबों से
हो जाती है
मुकम्मल
यूँ
जुगलबंदी
मौन की..........

1 टिप्पणी:

Vinesh ने कहा…

मुकम्मल जुगलबंदी ! मौन बोलता है...मौन सुनता है....मौन जी भी लेता है...