मंगलवार, 26 जनवरी 2010

फितरत -अश्कों की

पोंछना अहिस्ता से
बहते अश्कों को
और गहरी आवाज़
में पूछ बैठना
'रोती क्यूँ हो'
बढा गया था
अश्कों की बाढ़
को' इस कदर
की बह गया था
हर गिला शिकवा
उसमें घुल कर
भीग गयी थी
उस प्यार की
बरसती बारिश में
खिल उठा था मन
झूम उठा था तन
आवेग उस प्रेम का
दे गया था अश्क
आँखों को फिर से
और चकित से तुम
देख रहे थे..
आंसुओं की फितरत
को समझ रहे थे ......

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