छुअन से तेरी नजरो की,दहक उठे मेरे , रुखसार जैसे
हया से झुक गयी पलकें ,किया बेलफ्ज़ हो, इज़हार जैसे
थी किसकी हसरतें जाने,अज़ल से मुन्तजिर दिल में
मुक्कमल हो गया ,आने से तेरे, इंतज़ार जैसे
तब्बस्सुम आज हैं लब पर,अदाओं में भी शोखी है
था मुरझाया मुद्दतों दिल, रहा था, सोगवार जैसे
बुझाई है घटा बन के ही मैंने, तिश्नगी सबकी
भिगो दो अब तुम्ही मुझको,हो कोई , आबशार जैसे
समझ लो ना यूँही जानां ,कहानी झुकती नज़रों की
कि दिल करता है हर लम्हा ,उसी का , इश्तिहार जैसे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें