मन के भावों को यथावत लिख देने के लिए और संचित करने के लिए इस ब्लॉग की शुरुआत हुई...स्वयं की खोज की यात्रा में मिला एक बेहतरीन पड़ाव है यह..
रविवार, 17 जनवरी 2010
'उद्यान'---(आशु रचना )
वो कली से फूल बनता गुलाब, वो जूही की लचीली डाली साँसों को महकाता बेला, चंपा पर बैठी तितली घास पर बिछी चादर हरसिंगार की ओस की छुअन कोयल की कुहू होता है सब अलग सा क्यूँ अब 'उद्यान' में !!!!!
1 टिप्पणी:
sunder
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