शनिवार, 16 जनवरी 2010

कोंपल

फूटी है उस शाख पर
फिर से कोंपलें
कोमल ,नाज़ुक,
ताज़गी का
एहसास लिए
जीवन की
शुरुआत लिए
सूनी पड़ी थी शाख
पतझड़ के बाद
छुआ बसंत ने
सत्व रगों में बहता
जीवन क्रम
हर जीवन का
यही है कहता
कोंपल बनेगी पत्ते
धूप बारिश
हवा शीत को
सहते हुए
पहुंचेगी
परिपक्वता को
झड जायेंगे पत्ते
देने स्थान
नयी कोंपल को
जीवन रस है
शाख में जब तक
फूटती रहेगी
कोंपल उस पर
हर बसंत के
आगमन पर

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