सोमवार, 19 जुलाई 2010

जड़ें-एहसासों के दरख़्त की

जड़ें-एहसासों के दरख़्त की

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मन की
भूमि पर
उगे
एहसासों के
दरख़्त को
सींच कर
नेह जल से
कर लिया है
जड़ों को
अब
मजबूत इतना
कि तूफ़ान कोई
विचारों का
नहीं सकता हिला
जड़ों को
इस दरख़्त की  ..
नहीं
टिक पाते
पत्ते भले ही
इन तूफानों के
सम्मुख
और
हो उठता है
भ्रम
वीरानियों का
किन्तु
रहता है
सत्व
अक्षुण्ण
प्रवाह में
और
फूट आती हैं
कोंपलें
फिर से
इन दरख्तों पर
जड़ें हैं जिनकी
गहरी
मेरे मन के
गहरे
दृढ तल में ......

5 टिप्‍पणियां:

Avinash Chandra ने कहा…

Di,

Is saal ki sauvin post...bahut balshali hai, akshun to hai hi :)

मुदिता ने कहा…

ओह थैंक्स अविनाश, मैंने तो ध्यान ही नहीं दिया कि ये इस साल कि सौंवी पोस्ट है.. शुक्रिया इस उपलब्धि में साथ देने के लिए :)

rashmi ravija ने कहा…

किन्तु
रहता है
सत्व
अक्षुण्ण
प्रवाह में
और
फूट आती हैं
कोंपलें
फिर से
इन दरख्तों पर
बिलकुल सही आकलन..सुन्दर कविता.
100th पोस्ट की बधाई
और तस्वीर बहुत प्यारी है.

Deepak Shukla ने कहा…

hi..

Pichhli sau kavitaon main...
tumne man jyon mohe sabke..
agle kai dashak main yun hi..
Mohit karna yun man sabke..

bhav mradul, ahsaas hain mohak..
har kavita pahle se sundar..
aise hi tum sada hi likhna..
sabse alag sada hi dikhna...

Ahsaason ke es darakht ko..
aandhi na koi chhoo paye...
palvit hon sapne sab man ke..
har sapna poora ho jaaye..

Deepak..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

इन दरख्तों पर
जड़ें हैं जिनकी
गहरी
मेरे मन के
गहरे
दृढ तल में ..
एहसास के दरख्त पर मजबूती से जड़ीं जड़ें...सुन्दर....सौवीं पोस्ट की बधाई