कर्म तुम्हारा
फूल खिला दे,
आशाओं के
दीप जला दे,
जले हृदय में
प्रीत की जोत,
हो मन
करुणा से
ओत प्रोत,
तभी समझना
दिशा सही है
सत्य की
बस
पहचान यही है.....
तेरे-मेरे के
भाव
मिटें जब,
हृदय से
सारे बोझ
हटें जब ,
जीने का
हर क्षण
हो उत्सव
ईश को पाना
तभी है संभव,
मलिन ना हो
कभी
मन ये तेरा,
खुशियों का
चहुँ ओर हो डेरा,
तभी समझना
दिशा सही है
सत्य की
बस
पहचान यही है.....
8 टिप्पणियां:
तेरे-मेरे के
भाव
मिटें जब,
हृदय से
सारे बोझ
हटें जब ,
जीने का
हर क्षण
हो उत्सव
ईश को पाना
तभी है संभव,
sach hai...
"जीने का हर क्षण हो उत्सव...".वाह वाह...वाह...बेजोड़ रचना...
नीरज
तेरे-मेरे के
भाव
मिटें जब,
हृदय से
सारे बोझ
हटें जब ,
.....
ईश को पाना
तभी है संभव,..
बहुत सही और सार्थक सोच..बहुत सुन्दर रचना.
जीने का
हर क्षण
हो उत्सव
ईश को पाना
तभी है संभव,
प्रेरणादायी पंक्तियाँ ..जीवन में आशा का संचार करने वाली ...आपका आभार
मुदिता जी,
बहुत सुन्दर.....आशा की और ले जाती है ये पोस्ट.......सत्य की बस पहचान यही है.....लाजवाब
मुदिता जी,
आपके द्वारा पहले उठाये गए सवाल का उत्तर देने की कोशिश की है.......वक़्त मिले तो जज़्बात की नयी पोस्ट ज़रूर देखे.....आभार |
कर्म तुम्हारा
फूल खिला दे,
आशाओं के
दीप जला दे,
जले हृदय में
प्रीत की जोत,
हो मन
करुणा से
ओत प्रोत,
तभी समझना
दिशा सही है
सत्य की
बस
पहचान यही है.....
sahi margdarshan deti sunder kavita -
badhai.
गीता दर्शन को उकेरती आप की कृति सत्य की पहचान है.
बिना अनुभव के ऐसी रचनाएँ लिखना असंभव है.
आप के गीता अनुभव को सलाम.
बहुत ही सार्थक लेखन.
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