है हक़ीक़त या ख़्वाब है, सवेरे-सवेरे
साथ तेरा नायाब है ,सवेरे-सवेरे
आब-ए-शब से भीगे गुलों पर भी देखो
कि उमड़ा शबाब है ,सवेरे-सवेरे
उनींदा अभी भी आगोश -ए-बादल
सिमटा आफताब है ,सवेरे-सवेरे
उतरती नहीं एक लम्हा भी दिल से
पुरअसर शराब है ,सवेरे-सवेरे
सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे
4 टिप्पणियां:
सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे
लाजवाब प्रस्तुति-- मुदिता जी .
उनींदा अभी भी आगोश -ए-बादल
सिमटा आफताब है ,सवेरे-सवेरे
subhanallah
सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे
बहुत खूब ,,... इतनी लाजवाब ग़ज़ल है सवेरे सवेरे ...
गहरे प्रीत के भाव लिए असरदार ग़ज़ल ..
सबा छू के उनको ,चली मुझ तक आई
असर लाजवाब है ,सवेरे-सवेरे
बहुत खूब.
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