डूबते उतराते
भव सागर के
अथाह
जल में
हो जाता है
अनायास ही
सामना
अनजानी लहरों
और
अनचाही
परिस्थितियों से...
टकरा जाते हैं
विभिन्न
प्रजातियों के
जीव भी
इस देह से
कभी ...
पा कर
एक अजूबा
मध्य अपने
करने लगते हैं
आघात
हर संभव
तरीके से
मुझ पर .....
कभी हो कर
शिथिल
बहने लगती हूँ
मैं
लहरों के साथ
और
हो कर कभी
उद्विग्न
करती हूँ
प्रयत्न
लहरों के
विपरीत भी
तैरने का ..
हो जाता है
मन क्लांत
अनचाहे से
इन
उपक्रमों से
और
मिलती है
विश्रांति
उसे
तुम्हारे
स्नेहिल स्पर्श
और
नज़रों से
परिलाक्षित
मौन
वार्तालाप में ...
चलो जानां !!
थाम के हाथ,
चलते हुए
इन अनजानी
लहरों पर ,
छोड़ते हुए
क़दमों के निशाँ
इस सागर
के
असीम जल पर ,
बिता लें
कुछ शांत पल
उस द्वीप पर
जहाँ
हम हैं ,
सिर्फ
"हम"
ही .....
12 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी लगी यह कविता.
सादर
इन अनजानी
लहरों पर ,
छोड़ते हुए
क़दमों के निशाँ
इस सागर
के
असीम जल पर ,
बिता लें
कुछ शांत पल
उस द्वीप पर
जहाँ
हम हैं ,
सिर्फ
"हम"
ही .....
बहुत खूबसूरत भाव .
मुदिता जी,
बहुत सुन्दर तरीके से शब्द दिए हैं आपने भावनाओ को.....सुन्दर|
वाह बहुत सुन्दर तरीके से भावनाओ को पिरोया है।
आपकी कविता पढ़ कर शब्द मौन हो जाते हैं
आपकी हर रचना इस दुनिया से चल कर उस दुनिया तक पहुँच ही जाती है.
सलाम.
उस द्वीप पर ...बहुत सुन्दर तरीके से आपने भावों को बांधा है
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (05.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कुछ शांत पल
उस द्वीप पर
जहाँ
हम हैं ,
सिर्फ
"हम"
ही .....
वाह ....वाह ..
बहुत अच्छी कविता.
sundar bhaw ki kavita hai.
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई
बहुत सुन्दर भावपूर्ण चित्रण..
बहुत गहरे एहसास हैं और उन्हें उतने ही गहरे शब्द दिए हैं आपने. अच्छा लगा पढ़ना.
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