बुधवार, 9 जून 2010

कहूँ कैसे

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मेरी चुप को ना गर समझे
ज़ुबां से मैं कहूँ कैसे
घुटा जाता है दम अब ,
बिन कहे भी मैं रहूँ कैसे

इश्क उनका ये मुझसे,
हो सही उनकी इबादत भी
तगाफुल  ,उस परस्तिश का
जो की मैंने , सहूँ कैसे
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 मायने -
इबादत-उपासना
तगाफुल-उपेक्षा
परस्तिश-पूजा

3 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

तगाफुल ,उस परस्तिश का
जो की मैंने , सहूँ कैसे
बहुत खूब
सुन्दर अल्फ़ाज

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदरता से कही है अपनी बात..

Deepak Shukla ने कहा…

नमस्कार...

जो तेरी चुप को न समझे,
वो बातों को भी क्या समझे..
वो कोई नासमझ होगा...
जो नज़रों को भी न समझे...

मुहब्बत मैं जुबान चुप और...
आखें बात करती हैं....
जो आँखों मैं ही न देखे...
वो बातों को भी क्या समझे...

दीपक शुक्ल..