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मेरी चुप को ना गर समझे
ज़ुबां से मैं कहूँ कैसे
घुटा जाता है दम अब ,
बिन कहे भी मैं रहूँ कैसे
इश्क उनका ये मुझसे,
हो सही उनकी इबादत भी
तगाफुल ,उस परस्तिश का
जो की मैंने , सहूँ कैसे
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मायने -
इबादत-उपासना
तगाफुल-उपेक्षा
परस्तिश-पूजा
3 टिप्पणियां:
तगाफुल ,उस परस्तिश का
जो की मैंने , सहूँ कैसे
बहुत खूब
सुन्दर अल्फ़ाज
सुंदरता से कही है अपनी बात..
नमस्कार...
जो तेरी चुप को न समझे,
वो बातों को भी क्या समझे..
वो कोई नासमझ होगा...
जो नज़रों को भी न समझे...
मुहब्बत मैं जुबान चुप और...
आखें बात करती हैं....
जो आँखों मैं ही न देखे...
वो बातों को भी क्या समझे...
दीपक शुक्ल..
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