शनिवार, 12 जून 2010

सितम है

जीवन साँसों के उठने गिरने का क्रम है
यही है ज़िंदगी , दिल को क्यूँ यह भ्रम है

ना झूमती शाखें हैं, ना महकते फूल
ऐसा जीना क्या उजड़ी बहार से कम है!

जश्न है गुलशन में खिलती हुई कली का
बिखरा मुरझा के गुल ,नहीं उसका गम है

अश्क दिखते नहीं बहते मेरी निगाहों से
छुआ जब भी दामन तेरा ,पाया उसे नम है

निगाहों में नहीं रानाई -ए-तब्बस्सुम
सजी है हँसी चेहरे पर कैसा यह फन है

शब-ए हिज्र ने पूछा जो हँस के हाल मेरा
सुनाये उसे क्या ,दिल पे जो सितम है

चुन चुन के पिरोए थे अल्फ़ाज़ बातों में
शब-ए-वस्ल हुई इन्ही किस्सों में खतम है

......

2 टिप्‍पणियां:

Avinash Chandra ने कहा…

:)

bahut sundar.......kise chunu?

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Gazal ho, geet ho, ya fir nazm ya koi kavita ho..
Har ek kalam ko tum..
Nafasat se bayan karte..
Likhe koi kya en par kuchh..
Sabhi alfaaz gum lagte..

Tere ahsaas ki janib..
Hain sajde main khade hain hum..
Dua main uth gaye hain hath..
Hum dil se dua karte..

Raho aise mahakte tum..
Ki roohon main sama jaao..
Jo bhi ahsaas hon tere..
Unhen alfaaz de paao..
Tera hi naam charo oor..
Sada gunje fizaon main..
Na koi ho tera dushman..
Rakeeb-e-yaar tum paao..
Khushi es kaynaat ki sab..
Tujhe mil jaayen saari hi..
Nahi gam koi ho tujhko..
Mukammal tum jahan paao..

Deepak..