शुक्रवार, 18 जून 2010

वार्तालाप-एक माँ का स्वयं से

नन्ही
पदचाप की
धीमी सी
आहट..
अनदेखे
स्पंदनो
की
प्यारी सी
सुगबुगाहट ..

पुत्र  की
आस में
चौथी बार
यह आहट है
आशंकित है
मन
ह्रदय में
छटपटाहट है ..

क्यूँ हूँ
मजबूर
वंश बेल
बढ़ाने को
बेटियों का
छीन
अधिकार
क्यूँ उनको
न पढ़ाने  को

मासूम सी
आँखों में
अनगिनत
प्रश्न हैं
सिर्फ पुत्रों
के आने
का ही
मनता क्यूँ
जश्न है

समझेगा
बोझ
कब तक
बेटियों को
यह ज़माना..
बेटों  से
बढ़ कर
माँ-बाप
का दुःख 
है उन्होंने
पहचाना ..

मूक समर्थन
मेरा,
पुत्र की
व्यर्थ
चाह में
बो  रहा है
कांटे
मेरी
बेटियों की
राह में ..

नहीं दे कर
उनको
जीवन का
सुदृढ़ आधार
स्वयं
कर रही हूँ
अपनी सी
तीन पौधें
तैयार ..

नहीं  !!
अब नहीं
सहूंगी
और यह
अनर्थ..
बनाऊँगी
बेटियों
को
इतना मैं
समर्थ ..

स्वयं
लहलहाएंगी वे
पूर्ण विकसित
तरु सी... 
कर देंगी
उसको भी
उर्वर,
भूमि
हो गर
मरू सी ..

सृष्टि का
आधार है
बेटी
दे कर
उसको
उचित
सम्मान..
बने  राष्ट्र
सुदृढ़
समग्र
यह
दिश  दिश
हो इसकी
पहचान ...

2 टिप्‍पणियां:

Avinash Chandra ने कहा…

sach kaha aapne...bahut sateek abhivyakti
aur sahi paksh liyaa antatah maa ne jo hamesha sahi hi hoti hai.

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..

Bete ki chahat main ab to..
Chheeno na beti ka sthan..
Aaj ki beti, kal ki janani..
Kyon na sab ye lete jaan..

Vansh bel beti se bhi hai..
Bete ko kyon diya ye maan..
Bete ki chahat main aakhir..
Beti ka na ho apmaan..

Jis ghar main beti na hoti..
Nishchhal prem ka na ho gyan..
Beti se ghar ki ronak hai..
Beti hai har ghar ki shaan..

Deepak..