############
गमक जाती हूँ
सोंधी मिट्टी सी
तेरी यादों की
शीतल फुहार से
वरना
बदगुमानियों ने मेरी
ज़र्रा ए खाक
बना दिया है मुझको.....
हटता नहीं
तेरा एहसास
एक लम्हा भी
मेरे ख़यालों से
हुआ है जादू कोई
फूँका है मंतर
या कोई मख़्फ़ी तावीज़
बंधा दिया है मुझको.....
धड़क रहा है सीने में
बन के दिल
जो शख़्स
हर लम्हा ,
वो मेरा कोई नहीं
दुनिया ने बारहा
बता दिया है मुझको ....
जमी थी बर्फ़
जज़्ब हुए
अश्क़ों की
सर्द से वजूद पर
किस तमाजते सरगोशी ने
दफ़अतन
पिघला दिया है मुझको ......
मायने:
मख़्फ़ी=अदृश्य, छुपा हुआ
बारहा-बार बार
तमाजते सरगोशी - फुसफुसाहट की गर्माहट
दफ़अतन=अचानक
10 टिप्पणियां:
एहसासों के सरगम सज गए हर शब्द में आपकी! ज़ज़्बात अवश से तैरने लगे मन की फ़िज़ा में। वाह!
वाह
उम्दा /बेहतरीन।
एहसासों को झकझोरती गहन अभिव्यक्ति।
वाह बहुत सुंदर
शुभकामनाएं
बहुत आभार
धन्यवाद
आपका शुक्रिया
धन्यवाद
धन्यवाद मेरी रचना को चुनने के लिए
बहुत ही सुन्दर...
वाह!!!
एक टिप्पणी भेजें